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समान नागरिक संहिता – प्रश्न महिलाओं के समान अधिकारों का, धर्म का नहीं

समान नागरिक संहिता – प्रश्न महिलाओं के समान अधिकारों का, धर्म का नहींरांची, 09 फरवरी :उत्तराखंड, गोआ के पश्चात समान नागरिक संहिता लागू करने वाला देश का दूसरा और स्वाधीनता के पश्चात समान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य होगा. वर्ष 1961 में गोआ सरकार सिविल कोड के साथ ही बनी थी. वहां सभी धर्मों के लोगों के लिए एक समान कानून है.

समान नागरिक संहिता?

समान नागरिक संहिता का अर्थ है – हर धर्म, जाति, संप्रदाय, वर्ग के लिए पूरे देश में एक ही नियम होगा. सभी धार्मिक समुदायों के लिये विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने के एक ही नियम होंगे. भारत में अब तक सभी नागरिकों के लिए एक समान ‘आपराधिक संहिता’ है, लेकिन समान नागरिक कानून नहीं है. समान नागरिक संहिता संविधान के अनुच्छेद 44 से उपजा है जो संविधान के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल है, इसमें सभी नागरिकों के लिए समान कानून लागू करने की बात कही गई है. इसका उद्देश्य संविधान की प्रस्तावना में ‘धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक गणराज्य’ के सिद्धांत का पालन करना है

न्यायालय और समान नागरिक संहिता

सर्वोच्च न्यायालय और देश के अलग-अलग उच्च न्यायालयों ने कई बार समान नागरिक संहिता लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया है. 23 अप्रैल, 1985 को तत्कालीन सीजेआई वाईवी चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में शाह बानो के पति को उन्हें हर महीने 179.20 रुपये भरण-पोषण के लिए देने का आदेश दिया था. हालांकि, बाद में तत्कालीन राजीव गांधी सरकार ने संसद में कानून बनाकर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को पलट दिया था.

प्रस्तावित कानून के प्रावधान

उत्तराखंड की 4% जनजातियों को क़ानून से बाहर रखने का प्रावधान किया गया है. इसके अलावा निम्नलिखित प्रावधान हैं –

1). प्रस्तावित कानून में सभी धर्मों में लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 18 साल होगी.

2). प्रस्तावित कानून में बहु-विवाह पर रोक का प्रावधान है.

3). पुरुष-महिला को तलाक देने का समान अधिकार मिलेगा.

4). लिव-इन-रिलेशनशिप रजिस्ट्रेशन नहीं कराने पर छह महीने का कारावास और 25 हजार का दंड या दोनों हो सकते हैं.

5). लिव-इन में पैदा बच्चों को संपत्ति में समान अधिकार है.

6). महिला के दोबारा विवाह में कोई शर्त नहीं है.

7). पति या पत्नी के जीवित रहते और बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं हो सकती है.

8). शादी का रजिस्ट्रेशन जरूरी, बिना रजिस्ट्रेशन सरकारी सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा.

9). विधेयक में सभी धर्मों की लड़कियों को भी लड़कों के बराबर ही विरासत का अधिकार देने का प्रस्‍ताव है जो अभी अलग-अलग है.

10). मुस्लिम महिलाओं को भी बच्चा गोद लेने का अधिकार देने का प्रस्‍ताव बिल में है.

11). मुस्लिम समुदाय के भीतर हलाला और इद्दत पर रोक लगाने का प्रस्‍ताव बिल में रखा गया है.

12). पति-पत्नी के बीच विवाद हुआ, तो बच्चों की कस्टडी दादा-दादी को देने का प्रस्‍ताव भी कानून में रखा गया है.

इन देशों में लागू समान नागरिक संहिता

समान नागरिक संहिता को मानने वाले मुस्लिम देशों की लंबी सूची है. इनमें पाकिस्तान, बांग्लादेश, तुर्किए, इंडोनेशिया और मिस्र जैसे देश शामिल हैं जो समान नागरिक संहिता को मानते हैं. इन देशों में किसी विशेष धर्म या समुदाय के लिए अलग कानून नहीं है. सभी लोगों के लिए एक समान कानून है. इसके अलावा अमेरिका, आयरलैंड और दूसरे भी कई देश हैं, जहां यह कानून लागू है. इस्लामिक देश शरिया कानून को मानते हैं और यहां अलग कानून नहीं है. सभी व्यक्तियों पर एक समान कानून लागू होता है. इज़रायल, जापान, फ्रांस और रूस में भी समान नागरिक संहिता लागू है.

कई मुस्लिम देश जहां कई शादियों पर रोक है, इनमें तुर्किए प्रमुख है. इसके अलावा इराक, सीरिया, मिस्र, मोरोक्को, में भी दूसरी शादी कोर्ट के अधीन है. ईरान और पाकिस्तान जैसे देश में यदि कोई दूसरी शादी करना चाहता है तो उसे अपनी पहली पत्नी से इजाजत लेनी होती है, इतना ही नहीं पहली पत्नी की सहमति का सबूत कोर्ट में दिखाना होता है. मलेशिया में निकाह के लिए पत्नी के साथ सरकारी एजेंसी की भी मंजूरी होनी चाहिए.


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