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SFI को पंसद खून की होली खेलना
रांची, 25 मार्च,  2019 : पिछले कल हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में हिंसा का नंगा नाच कर एक बार फिर अपनी रक्तरंजित विचारधारा का प्रमाण देकर देवभूमि हिमाचल को फिर शर्मशार करने का काम SFI के नक्सली कार्यकर्ताओं ने किया है। इतिहास से लेकर वर्तमान तक जब-जब हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में वामपंथ का वजूद समाप्त होने की कगार पर आया तब इन तथाकथित बुद्धिजीवी वामपंथियों ने खून से होली खेली है। SFI के यह नक्सली कार्यकर्ता विश्वविद्यालय के स्थापना काल से अभी तक 4 हत्याएं और हजारों छात्रों को जख्मी कर आजतक अपनी रक्तरंजित विचारधारा का परिचय देते आए हैं। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय जिसे शिक्षा क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए पहचाना जाना चाहिए वहां SFI के नक्सली कार्यकर्ता लगातार अपनी ओछी हरकतों से विश्विद्यालय का नाम खराब करने में लगे होते हैं। 
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् पिछले एक वर्ष से लगातार प्रशासन से मांग कर रही है कि अवैध रूप से छात्रावासों में रहने वाले सीटू के कार्यकर्ताओं को बाहर निकाला जाए क्योंकि यह लोग ही विश्वविद्यालय में माहौल खराब करते हैं। ब्वायज हास्टल के कुछ कमरों को सीटू का कार्यालय बनाकर छोटे कमरे में लगभग 4-4 और बड़े कमरों में करीब 7-8 लोग रोज मौजूद रहते हैं। रोज शराब परोसी जाती है और फिर रातभर इनका मुजरा चलता है तो कभी कमरों में जाकर आम छात्रों को डराया धमकाया जाता है तो कभी लाल लहू से अपनी प्यास बुझाने के लिए गुंडागर्दी का नंगा नाच। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में छात्रावासों का माहौल केवल यही लोग खराब करते आए हैं।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा समय समय पर लगती रहती है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् में भी आम छात्रों का विश्वास और ज्यादा बढ़ा है। क्योंकि विद्यार्थी परिषद् विद्यार्थियों की समस्याओं के समाधान के साथ - साथ विद्यार्थियों के भीतर राष्ट्रवाद की अलख जगाकर उन्हें देश व समाज के लिए कार्य करने को प्रेरित करती है। वर्तमान समय में भी वामपंथ की बौखलाहट का यही कारण है - "राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के स्वरूप में दिन प्रतिदिन होती हुई वृद्धि"।
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय का विद्यार्थी जब इन शहरी नक्सलियों को बिल्कुल नकारने लगता है तो यह लाल रक्त पिपासु अपने मौलिक कार्य "रक्तरंजित क्रांति" का सहारा लेकर उन्हें डराकर उन पर अपना प्रभुत्व स्थापित करते आए हैं। ऐसे ही हालात बनाने की कोशिश एक बार फिर SFI ने की है क्योंकि अब विश्वविद्यालय में इनकी संख्या केवल गिनी चुनी ही रह गई है। अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले विद्यार्थियों के साथ सदैव कंधे से कंधा मिलाकर खड़ी है और ऐसे हालात में एकजुट होकर इन तथाकथित बुद्धिजीवियों के संपूर्ण बहिष्कार की आशा करती है ताकि मार्क्स और माओ की हिंसात्मक विचारधारा से  छुटकारा मिल सके और विश्विद्यालय में शैक्षणिक एवं अहिंसा युक्त वातावरण का निर्माण हो।

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