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रक्षाबंधन सावन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है.श्रावण मास में मनाये जाने के कारण इसे श्रावणी भी कहते हैं. रक्षा बंधन में राखी या रक्षा सूत्र कच्चे Bharat VSK 25 08 2018धागे से लेकर रंगीन कलावे रेशमी धागे या सोने या चांदी जैसे महंगी वस्तु तक की हो सकती है. बहन अपने भाइयों को यह रक्षा सूत्र बांधती है परंतु ब्राह्मणों,गुरु और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा सम्मानित संबंधियों को भी बांधी जाती है. कभी-कभी सार्वजनिक रूप से किसी नेता या प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी राखी बांधी जाती है. अब तो प्रकृति संरक्षण हेतु वृक्षों को राखी बांधने की परंपरा भी प्रारंभ हो गई है.

हिंदू धर्म के सभी धार्मिक अनुष्ठानों में रक्षा सूत्र बांधते समय कर्मकांडी पंडित या आचार्य संस्कृत में श्लोक का उच्चारण करते हैं, जिसमें रक्षाबंधन का संबंध राजा बलि से स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है. भविष्य पुराण के अनुसार इंद्राणी द्वारा निर्मित रक्षा सूत्र को देवगुरु बृहस्पति इन्द्र के हाथों बांधते हुए निम्नलिखित स्वस्ति वाचन का उल्लेख मिलता है- येन बद्धो बलिराजा दानवेंद्रो महाबल, तेन त्वाम् प्रति बंधनामी रक्षेत माँ चल माचल:” 

इस दिन बहने अपने भाई के दाहिनी हाँथ में रक्षा सूत्र बांधती है.जब बहन विवाह के बाद पराए घर में चली जाती है तो इस बहाने प्रतिवर्ष अपने सगे ही नहीं अपितु दूरदराज के रिश्तो में भाइयों तक को उनके घर जाकर राखी बांधती हैं और इस प्रकार अपने रिश्तो का नवीनीकरण करती हैं. दो परिवारों का और दो कुलों का पारस्परिक योग होता है. समाज के विभिन्न वर्गों के बीच भी एकसूत्रता के रूप में इस पर्व का उपयोग किया जाता है. इस प्रकार जो कड़ी टूट गई है उसे फिर से इस पर्व को ध्यान में रखकर जागृत किया जा सकता है.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी रक्षाबंधन का सहारा लिया गया श्री रविंद्र नाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन त्योहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बना कर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग प्रारंभ किया था. 1905 में उनकी प्रसिद्ध कविता मातृभूमि बंदना का प्रकाशन हुआ जिसमें लिखते हैं –

हे प्रभु मेरे देश की धरती नदियां वायु ,फुल सब पावन हों.

हे प्रभु मेरे बंगदेश का प्रत्येक भाई बहन की उर अंतस्थल अविछिन्न,अविभक्त एवं एक हो.

सन 1905 में लॉर्ड कर्जन ने बंग-भंग करके वंदे मातरम के आंदोलन से भडकी एक छोटी सी चिंगारी को शोले  में बदल दिया था. 16 अक्टूबर 1905 का घोषणा के दिन रक्षाबंधन की योजना बनाकर गंगा स्नान करके लोग सड़कों पर यह कहते हुए उतरे-

सप्त कोटि लोकेर करुण-क्रन्दन सुनेन सुनील कर्जन दुर्जन.

ताड़ निते मनेर मतन करील, आमी स्वजने राखी बंधन.

उत्तरांचल में इसे श्रावणी कहते हैं इस दिन यार्जुवेदीय ब्राह्मणों का विशेष उपक्रम होता है उत्सर्जन, स्नान विधि, ऋषि तर्पण, आदी करके नवीन यज्ञोपवीत धारण किया जाता है. ब्राह्मणों का यह सर्वोपरि पर्व माना जाता है. इस दिन से छ:माह के लिए वेदाध्यान्न की भी परिपाटी है.ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत व राखी देकर दक्षिणा भी लेते हैं.

अमरनाथ की अति विख्यात धार्मिक यात्रा गुरु पूर्णिमा से प्रारंभ होकर रक्षाबंधन के दिन संपूर्ण होती है कहते हैं इसी दिन यहां का हिमानी शिवलिंग भी अपने पूर्ण आकार को प्राप्त होता है इस उपलक्ष में इस दिन अमरनाथ गुफा में प्रत्येक वर्ष मेले का आयोजन भी होता है.

महाराष्ट्र राज्य में यह त्यौहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से विख्यात है. इस दिन लोग नदी या समुद्र के तट पर जाकर अपने जनेऊ बदलते हैं और समुद्र की पूजा करते हैं. इस अवसर पर समुद्र के स्वामी वरुण देवता को प्रसन्न करने के लिए लोग नारियल अर्पित करने की परंपरा भी है. यही कारण है कि इस दिन  मुंबई के समुद्र तट नारियल के फलों से भर जाते हैं .

इसी तरह राजस्थान में रामराखी और चुडाराखी या लूबा बांधने का रिवाज है. रामराखी सामान्य राखी से भिन्न होती है इसमें लाल डोरे पर एक पीले रंग का फुदना लगा होता है. यह केवल भगवान को ही बांधी जाती है.चुडा राखी भाभियों की चूड़ियों में बांधी जाती है. जोधपुर में राखी के दिन केवल राखी नहीं बांधी जाती बल्कि दोपहर में पद्मसर और मीनकनाडी पर गोबर मिट्टी से  शरीर को शुद्ध किया जाता है. इसके बाद धर्म तथा वेदों के प्रवचनकर्ता अरुंधति, गणपति, दुर्गा, गोविंद के पूजा स्थल बनाकर उनकी मंत्रोच्चारण के साथ पूजा करते हैं, उनका तर्पण करते है. धार्मिक अनुष्ठान करने के बाद घर आकर हवन करते हैं, वही रेशमी डोरी से राखी बनाई जाती है राखी को कच्चे दूध से अभिमंत्रित करते हैं पहनते हैं और इसके बाद ही भोजन करने का प्रावधान है.

तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उड़ीसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनी और अविउत्तम कहते हैं. यज्ञोपवीत धारण ब्राह्मणों के लिए यह दिन अत्यंत महत्वपूर्ण है इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है वर्ष के पुराने पापों को पुराने यज्ञोपवीत की भांति त्याग देने और स्वच्छ नवीन यज्ञोपवीत की भांति नया जीवन प्रारंभ करने की प्रतिज्ञा ली जाती है. इस दिन आयुर्वेद में ब्राह्मण छह महीनों के लिए वेद का अध्ययन प्रारंभ करते हैं इस पर्व का नाम उत्क्रमण भी है जिसका अर्थ है -नई शुरुआत.

 ब्रज में हरियाली तीज से श्रावणी पूर्णिमा तक समस्त मंदिरों एवं घरों में ठाकुर झूले में विराजमान होते हैं. रक्षाबंधन वाले दिन झूलन दर्शन समाप्त होते हैं. उत्तर भारत में रक्षा बंधन के अवसर पर बहन अपना संपूर्ण प्यार राखी के रूप में अपने भाई की कलाई पर बांध कर उड़ेल देती हैं. भाई इस अवसर पर कुछ उपहार देकर भविष्य में संकट के समय सहायता देने का वचन देता है.

राखी का त्यौहार कब से शुरू हुआ यह कोई नहीं जानता, लेकिन भविष्य पुराण में वर्णन मिलता है कि देव और दानवों में जब युद्ध शुरू हुआ तब दानव से देव की हार होती नजर आने लगे भगवान इंद्र घबराकर बृहस्पति के पास गए वहां बैठी इंद्राणी सब सुन रही थी उन्होंने रेशम का धागा मंत्रों की शक्ति से पवित्र करके अपने पति के कलाइयों पर बांध दिया. संयोग से वह दिन श्रावण पूर्णिमा का दिन था. लोगों को विश्वास है कि इस लड़ाई में इसी धागे की मंत्र शक्ति से विजई हुए थे उसी दिन से श्रावण पूर्णिमा के दिन या धागा बांधने की प्रथा चली आ रही है. यह धागा धन, शक्ति, हर्ष और विजय देने में पूरी तरह समर्थ माना जाता है.

स्कंदपुराण, पद्मपुराण और श्रीमद्भागवत में वामन अवतार नामक कथा में रक्षाबंधन का प्रसंग मिलता है. कथा कुछ इस प्रकार है दानवेंद्र राजा बलि ने जब सो यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य प्राप्त करने का प्रयत्न किया तो इंद्र आदि देवताओं ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की.  भगवान वामन अवतार लेकर ब्राह्मण का वेश धारण कर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे. गुरु के मना करने पर भी बलि ने तीन पग भूमि दान कर दी. भगवान ने तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को पाताल लोक में भेज दिया इस प्रकार भगवान विष्णु द्वारा बलि राजा के अभिमान को चकनाचूर कर देने के कारण यह त्यौहार बलेव नाम से प्रसिद्ध है.

 कहते हैं जब बाली पताललोक  में चला गया तब बली ने अपने भक्ति के बल से भगवान को रात दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया. भगवान के घर ना लौटने से परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी ने एक उपाय बताया, उस उपाय का पालन करते हुए लक्ष्मी जी ने राजा बलि के पास जाकर उनको रक्षाबंधन बांधकर अपना भाई बनाया और  भगवान विष्णु को अपने साथ ले गयी.इसलिए भी यह त्यौहार प्रचलित है.

 श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि विष्णु पुराण के एक प्रसंग में कहा गया है कि सावन की पूर्णिमा के दिन भगवान विष्णु ने हयग्रिब के रूप में अवतार लेकर वेदों को ब्रह्मा के लिए फिर से प्राप्त किया है. हयग्रिब को विद्या और बुद्धि का प्रतीक माना जाता है.

महाभारत में भी इस बात का उल्लेख है कि पांडव युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं. तब भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी उनकी सेना की रक्षा के लिए रक्षा सूत्र बांधने की सलाह दी थी उनका कहना था कि रक्षा सूत्र के इस रेशमी धागे में वह शक्ति है जिससे आप हर आपत्ति से मुक्ति पा सकते हैं. इस समय द्रोपदी धागा बांधने का उल्लेख मिलता है.  श्रीकृष्ण और द्रौपदी का एक वृतांत भी मिलता है. जब कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से शिशुपाल का वध किया तब उनकी तर्जनी में चोट आ गई थी द्रोपदी ने उस समय अपनी साड़ी फाड़कर उनकी उंगली पर पट्टी बांधी थी, यह दिन भी श्रावण पूर्णिमा था, कृष्ण इस उपकार का बदला बाद में जब भरी सभा में द्रोपदी का चीरहरण हो रहा था, उसमें उनके वस्त्र को बढ़ाकर श्रीकृष्ण ने कर्ज चुकाया.कहते हैं परस्पर एक दूसरे की रक्षा, सहयोग की भावना रक्षाबंधन के पर्व यहीं से प्रारंभ हुआ.


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