कन्वर्जन - मिशनरियों और जिहादियों का भारत के विरुद्ध षड्यंत्र
रांची, 03 अक्टूबर : वर्तमान में भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक भारत विरोधी शक्तियां अपनी पूरी ताकत से लगी हुई हैं, जो चाहती हैं कि भारत का कई टुकड़ों में विखंडन हो जाए
बीते वर्ष सर्वोच्च न्यायालय ने जबरन धर्मान्तरण को विरुद्ध कानून बनाए जाने की मांग करने वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए करते हुए इस मुद्दे पर स्पष्ट शब्दों में कहा था कि 'धर्मान्तरण को राजनीतिक रंग नहीं दिया जाना चाहिए।'
इससे पहले की सुनवाई में भी सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए उपाय बनाना चाहिए जिसमें प्रलोभन के आधार पर मतांतरण किया जा रहा हो।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी ना सिर्फ आवश्यक थी, बल्कि एक ऐसी टिप्पणी है जिसे उन सभी दलों को एकमत से स्वीकार करना चाहिए जो राष्ट्रहित का विचार रखते हैं।
धर्म परिवर्तन किसी भी राष्ट्र के लिए घातक है। यह बात पूरी तरह सटीक भी बैठती है, क्योंकि जब कोई भारतीय मूल के धर्म (हिंदु, सिख, बौद्ध, जैन) का व्यक्ति गैर भारतीय मूल के धर्म में शामिल होता है, तो उसके आस्था केंद्र के साथ-साथ वैश्विक गतिविधियों पर नजरिए में भी परिवर्तन आता है।
यदि उदारहण के लिए देखें तो यदि कोई हिंदु, सिख, जैन या बौद्ध है तो उसके आस्था के मुख्य केंद्र भारत में स्थित मंदिर, तीर्थ, गुरुद्वारा, जिनालय और बौद्ध विहार एवं मठ होंगे, लेकिन यदि वही व्यक्ति इस्लाम या ईसाई बन जाता है तो उसके लिए सर्वाधिक पवित्र भूमि भारत की नहीं बल्कि अरब का मक्का और यूरोप का वेटिकन हो जाता है, ऐसे में स्वतः ही उसकी प्राथमिकता बदल जाती है।
यही कारण है कि कभी महात्मा गांधी ने कहा था कि धर्मान्तरण असल में राष्ट्रांतरण है।
वर्तमान में भारत में उत्तर से लेकर दक्षिण तक और पूरब से लेकर पश्चिम तक भारत विरोधी शक्तियां अपनी पूरी ताकत से लगी हुई हैं, जो चाहती हैं कि भारत का कई टुकड़ों में विखंडन हो जाए।
इन विधर्मी शक्तियों ने मतांतरण को अपना सबसे महत्वपूर्ण हथियार बनाया है। चूंकि भारत हिंदुओं की, सनातन आस्थाओं को मानने वालों की पुण्यभूमि है, अतः इन विधर्मियों के निशाने में हिंदु समाज के सभी अंग हैं।
देश में ईसाई मिशनरियों और इस्लामिक जिहादियों ने मतांतरण का ऐसा मायाजाल फैलाया हुआ है कि हिंदु समाज इसमें ना चाहते हुए भी फंस रहा है।
इन विधर्मी समूहों ने मुख्य रूप से सनातन संस्कृति के आधार स्तम्भ जनजातीय समाज और दलित समाज को अपना पहला शिकार बनाया और अब ये हिंदु समाज की बेटियों को मुख्य रूप से लक्षित कर अपना काम कर रहे हैं।
इसके अलावा देश के कुछ हिस्से ऐसे हैं जो सामरिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील हैं, ऐसे स्थानों में भी षड्यंत्रपूर्वक मतांतरित समूह की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि की जा रही है।
सबसे पहले बात करते हैं हम उत्तर पूर्वी राज्यों की, जहां अंग्रेज ईसाइयों के आने के साथ ही ईसाइयत का प्रसार शुरू हो गया। ब्रिटिश ईसाई सत्ता के दौरान मां त्रिपुर सुंदरी, भगवान नारायण और देवादिदेव महादेव के उपासकों की पवित्र भूमि को ईसाइयों ने अपनी प्रयोगशाला बना लिया। ब्रिटिश ईसाई सत्ता की धमक, विदेशी साजिश, स्वास्थ्य एवं शिक्षा का षड्यंत्रपूर्वक प्रयोग और हथियारों के बल पर हजारों-लाखों लोगों का मत परिवर्तन किया गया।
जिसने विरोध किया उसे खत्म कर दिया गया, जिसने आवाज उठाई उसे चुप करा दिया गया, विद्रोह हुआ तो उसे कुचल दिया गया और इस प्रकार भारत के उत्तरपूर्वी नक्शे में ईसाइयत ने खून की नदियां और षड्यंत्र की नीति के साथ अपना विस्तार किया।
आज स्थिति ऐसी है कि नागालैंड, मिज़ोरम, मेघालय और अरुणाचल प्रदेश में ईसाई बहुसंख्यक हैं, वहीं मणिपुर जैसे राज्यों में उनकी आबादी बहुसंख्यक होने की कगार पर है।
मतांतरण का परिणाम कुछ ऐसा हुआ है कि इन क्षेत्रों में चर्च समर्थित आतंकी संगठनों से लेकर अलगाववादी संगठन तक तैयार हो चुके हैं, वहीं भारतीय संस्कृति की बात करने पर अघोषित पाबंदियां लगाई जा रही हैं।
जिस तरह उत्तर पूर्व में ईसाइयों ने धर्मांधता का प्रचार-प्रसार किया है, उसी जम्मू-कश्मीर के कश्मीर क्षेत्र की परिस्थितियां किसी से छिपी हुई नहीं है। कश्मीर में भी हिंदुओं के खून को बहाकर उसका इस्लामीकरण किया गया है, जो आज भी इस्लामिक जिहाद की हिंसा से ग्रसित है।
कश्मीर के अलावा बंगाल का एक बड़ा हिस्सा इस्लामिक जिहादियों के कब्जे में आ चुका है, जहां से आए दिन हिंसा एवं आतंक की घटनाएं सामने आती हैं। एक तरफ जहां चिनक नेक जैसा संवेदनशील क्षेत्र इस्लामिक बाहुल्य क्षेत्र बन चुका है, वहीं दूसरी ओर बंगाल के कई हिस्से अब जिहादी तत्वों के कारण आतंरिक सुरक्षा के लिए खतरा बनते जा रहे हैं।इस्लामिक जिहादियों का एक पूरा कॉरिडोर उत्तरप्रदेश से लेकर बिहार और बंगाल होते हुए असम तक फैला हुआ है, जिसमें झारखंड के हिस्सों में भी इनकी प्रभावी मौजूदगी है।
जम्मू कश्मीर में जहां मुस्लिम आबादी 68.31 प्रतिशत के साथ बहुसंख्यक है, वहीं असम, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और बिहार में इतनी संख्या में मौजूद है, जिसमें वह राजनीतिक एवं सामाजिक रूप से प्रभाव डाल सकती है।
देशभर में ऐसे जिले जहां मुस्लिमों की आबादी 60 प्रतिशत से अधिक है, उनकी संख्या 24 तक पहुंच चुकी है, और लगभग इनमें से अधिकांश जिलों में हिंसा, दंगे, आतंक एवं साम्प्रदयिक तनाव की स्थिति देखी गई है। साथ ही यह भी देखा गया है कि इन स्थानों में हिंदुओं के साथ दुर्व्यवहार की घटनाओं में वृद्धि आई है।
यदि हम पश्चिमी राज्यों की बात करें तो पंजाब ईसाई मिशनरियों के निशाने पर प्रमुख रूप से है। पंजाब में बीते कुछ वर्षों में एकाएक धर्मान्तरण की गतिविधियों में वृद्धि देखी गई है।
अमृतसर जैसे सीमावर्ती क्षेत्र अब ईसाइयों के षड्यंत्र का हिस्सा बन चुके हैं, वहीं गुरु पुत्रों के बलिदान की भूमि को भी मतांतरण का केंद्र बनाया जा रहा है। हाल ही में क्रिसमस के दौरान चमकौर साहिब से अवैध मतांतरण की घटना की खबर सामने आई थी, जिसके बाद यह कहा जा रहा था कि जहां गुरु गोबिंद सिंह जी के दो पुत्रों ने धर्म की रक्षा के लिए अपना बलिदान दिया, उसी स्थान पर धर्म का ह्रास किया जा रहा है।
पंजाब को लेकर कई रिपोर्ट्स सामने आ चुकी है, जिसमें कहा गया है कि बड़ी संख्या में स्थानीय लोग ईसाई धर्म स्वीकार कर रहे हैं, जिसमें मुख्य रूप से अनुसूचित जाति के लोग शामिल हैं। हालांकि पंजाब में मतांतरण को लेकर दो प्रमुख खतरे हैं, पहला तो यह है कि पंजाब एक सीमावर्ती क्षेत्र है, जिसकी सीमा भारत के शत्रु देश पाकिस्तान से लगती है।
यह क्षेत्र आंतरिक एवं बाह्य, दोनों दृष्टि से अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र है, ऐसे में यहां यदि किसी भी प्रकार की भारत विरोधी गतिविधियां होती है तो यह पूरे देश के लिए बड़ा खतरा हो सकता है।
वहीं दूसरा खतरा है समाज के रूप में, दरअसल यहां मतांतरित हो रहे समूह ईसाई धर्म अपनाने के बाद स्वयं को शासकीय दस्तावेजों में अभी भी ईसाई बताने से परहेज कर रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप आंकड़ों में ईसाइयों की संख्या जरूर कम है लेकिन जमीन में इनकी अप्रत्याशित वृद्धि हो रही है। ऐसे में समाज के बीच आपसी तनाव एवं संघर्ष स्थितियां निर्मित होने की संभावना बढ़ चुकी है।
मध्य भारत की ओर देखें तो यहां अलग-अलग हिस्सों में ईसाइयों और इस्लामिक जिहादियों ने अपने-अपने क्षेत्र चुन रखें हैं, जहां वो अपनी अनैतिक गतिविधियों को अंजाम दे रहे हैं।
मध्य भारत और दक्षिण पश्चिम भारत के गैर-जनजातीय क्षेत्रों में इस्लामिक जिहादी तत्व सक्रिय हैं, वहीं जनजातीय क्षेत्रों में ईसाइयों ने अपना डेरा बनाकर रखा हुआ है।
वहीं छत्तीसगढ़ के बस्तर में साम्प्रदायिक हिंसा की घटना सामने आई थी, जिसका मुख्य कारण ही मतांतरण था। इस बस्तर के नारायणपुर जिले में नव-धर्मान्तरित ईसाइयों ने मूल जनजाति संस्कृति मानने वाले जनजातियों को निशाना बनाया और उनपर जानलेवा हमले किए थे।
स्थानीय जनजातीय काफी लंबे समय से क्षेत्र में मतांतरण का विरोध कर रहे थे, साथ ही ईसाइयों के द्वारा की जा रही विधर्मी गतिविधियां उन्हें आक्रोशित कर रही थी, इस मामले को लेकर जनजातीय समाज ने कई बाद पुलिस एवं प्रशासन को शिकायत भी की थी, लेकिन बावजूद इसके कोई कार्रवाई नहीं हुई।
इसी का फायदा उठाते हुए ईसाइयों ने जनजातियों पर हमले किए ताकि उन्हें डराकर चुप किया जा सके। यह घटना इस बात की पुष्टि करती है कि धर्मान्तरण किसी भी क्षेत्र में हो, उसके परिणाम जब आते हैं तो वो राष्ट्र और समाज के लिए घातक होते हैं।
अब बात करते हैं भारत के दक्षिणी क्षेत्र की। दक्षिण भारत आज भी अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है, लेकिन धर्मान्तरित समूहों ने यहां की संस्कृति में भी 'दीमक' का काम किया है।
कभी तेलंगाना के मंदिरों में ईसाइयों की पैठ की घटना हो या कर्नाटक में मुस्लिमों की भीड़ द्वारा की जा रही हिंसा, कभी, हैदराबाद में इस्लामिक जिहादियों की गतिविधियां हो या तमिलनाडु में धर्मान्तरित समूहों द्वारा अलगाववादी विचार का प्रसार, यह सभी धर्मान्तरण के वो दुष्परिणाम हैं जो देश के इस हिस्से में भी देखे जा रहे हैं।
सनातन संस्कृति की।प्राचीन आस्थाओं के केंद्र केरल में भी धर्मान्तरण का परिणाम ऐसा है कि आज भारत जे आईएसआईएस जैसे आतंकी संगठनों में जाने वाले सर्वाधिक मुस्लिम युवा-युवती केरल के ही हैं।पीएफआई जैसे आतंकी संगठन को पनाह देना हो या ईसाइयों की अनैतिक गतिविधियों को बढ़ावा देना हो, ये सभी कार्य केरल में धड़ल्ले से चल रहे हैं। ऐसे माहौल को देखते हुए बस एक ही बात कही जा सकती है कि अब भारत में राष्ट्रीय स्तर पर धर्मान्तरण को रोकने के लिए एक कठोरतम कानून की आवश्यकता है, ताकि देश के विरोधियों के द्वारा की जा रही इन अवैध गतिविधियों पर विराम लग सके।