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सिर दे डाला दिया न सार के विग्रह गुरु तेगबहादुर

डा जंग बहादुर पाण्डेय "तारेश"

रांची, 26 फरवरी : सिक्खों का इतिहास पराक्रम और शौर्य का रहा है।सिक्ख धर्म के आदि गुरु नानकदेव जी हैं। सिक्ख धर्म में 10 गुरु हुए हैं : गुरुनानक देव,गुरु अंगददेव, गुरु अमरदास, गुरु रामदास, गुरु अर्जुनदास,गुरु हर गोविन्द जी,गुरु हरराय जी,गुरु हरिकृष्ण जी,गुरु तेग बहादुर और गोविंद सिंह।

सिक्खों के नवें गुरु तेग बहादुर जी छठें गुरु हरगोविंद जी के पुत्र थे। उनका आविर्भाव 1.4.1621 ई.में अमृतसर में हुआ था। पिता की छत्रछाया में उन्हें अस्त्र-शस्त्र संचालन के साथ साथ हर प्रकार की शिक्षा मिली। उनके जीवन के आरंभिक वर्ष सुखी गृहस्त के रुप में बीते।10 वें गुरु गोविंद सिंह इन्हीं के पुत्र थे।
8वें गुरु हरिकृष्ण जी के ज्योतिलीन होने के बाद गुरु तेग बहादुर 43 वर्ष की उम्र में 1664 ई. में गद्दी पर बैठे। उन्होंने विभिन्न धार्मिक स्थानों की यात्रा की और आंनद पुर नाम का नगर बसाया। औरंगजेब के अत्याचारों से सताए हुए कश्मीरी पंडितों ने यहीं आकर उनसे धर्म की रक्षा की याचना की थी।

1665 ई. में वे धर्म प्रचार और तीर्थयात्रा पर निकले। उनकी यात्रा के स्थानों पर जगह-जगह गुरुद्वारे बने हुए हैं। उन्होंने असम जाकर दो राजाओं के बीच आसन्न युद्ध को, समझौता कराकर,जनता का रक्त पात रोका। उस समय उनका परिवार पटना में था। असम में ही उन्हें पटना में गुरु गोविंद सिंह जी के जन्म का समाचार मिला।

औरंगजेब कश्मीरी हिंदुओं को बलात् मुसलमान बनाने लगा था। उनके प्रतिनिधि ने अपना संकट गुरु तेग बहादुर के समक्ष रखा, जिससे वे अत्यंत दुखी हुए।फिर उन्होंने कश्मीरी पंडितों के प्रतिनिधियों से कहा कि वे दिल्ली जाकर औरंगजेब से कहें कि हमारे धार्मिक नेता गुरु तेग बहादुर हैं। यदि वे इस्लाम धर्म कबूल कर लें, तो हम भी मुसलमान बन जाएंगे। यह सुनते ही औरंगजेब ने गुरु की गिरफ्तारी का आदेश दे दिया।

दूसरी ओर गुरु अपने 5 शिष्यों भाई मतिदास, भाई दयाला, भाई जेता, भाई उदा,और भाई गुरुदित्ता के साथ दिल्ली चल दिए।उन्हें गिरफ्तार करके धर्म परिवर्तन के लिए प्रलोभन दिए गए, आतंकित किया गया।भाई मतिदास को आरे से चीरा गया,भाई दयाला को देग मे उबाला गया,पर गुरुजी सहित कोई इस्लाम धर्म स्वीकार करने के लिए तक तैयार नहीं हुआ।इस पर, 1675 ई. में चांदनी चौक दिल्ली में गुरु तेग बहादुर का सिर काट दिया गया।जिस स्थान पर धर्म रक्षा के लिए गुरु ने अपना बलिदान दिया,वह स्थान अब 'शीशगंज' गुरुद्वारा के नाम से प्रसिद्ध है।जहाँ पर उनका अंतिम संस्कार हुआ,वह गुरुद्वारा 'रकाबगंज' है।इनके बलिदान ने सिक्खों को मुगलों के अत्याचार का बदला लेने की प्रेरणा दी।उनकी वाणी जो ब्रजभाषा में है,गुरुग्रंथ साहब में संग्रहित हैं और उसमें भक्ति और वैराग्य के भाव भरे हुए हैं।

राष्ट्रकवि मैथिली शरण गुप्त ने अपने प्रबंध 'गुरुकुल' में सिक्खों के बलिदान को नमन करते हुए लिखा है:

जिस कुल, जाति,देश के बच्चे,
दे सकते हैं यों बलिदान।
उसका वर्तमान कुछ भी हो,
पर भविष्य है महा महान।
गुरु तेग बहादुर की वीरता और पराक्रम की प्रशंसा करते हुए गुप्त जी ने लिखा है:
तेग बहादुर, हां, वे ही थे,
गुरु-पदवी के पात्र समर्थ।
तेग बहादुर हां, वे ही थे,
गुरुपदवी थी जिनके अर्थ।
तेग बहादुर,हां वे ही थे,
पंचामृत-सर के अरविन्द।
तेग बहादुर हां वे ही थे,
जिनसे जन्मे गुरुगोविन्द।
राष्ट्र कवि ने उनके बलिदान और शौर्य को नमन करते हुए लिखा है कि'
कांप उठा आकाश अचानक,
प्रांत प्रांत कर उठा पुकार।
सुना सभी ने ,कह सभी ने,
सिर दे डाला,दिया न सार।
उबल उठे उत्तप्त पंचनद,
रहा क्षोभ का आर न पार।
हर हर करके हहराये वे,
सिर दे डाला,दिया न सार।


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