अमीरचंद जी विदा हो गए : मालिनी अवस्थी
रांची, 21 अक्टूबर : अपने गाँव के उसी घर से, जिसे उन्होंने कभी युवावस्था में ही, राष्ट्र की सेवा के लिए त्याग दिया और समर्पित कर दिया था अपना सर्वस्व- भारत की सांस्कृतिक चेतना को संगठित करने में । बलिया में उनको प्रणाम करने पहुँची थी । उनके घर की ओर चलते हुए सोच रही हूँ, देशसेवा में खुद को आहूत कर देने वाले माटी के लाल, भारत की जड़ से ऐसे ही तपस्वी परिवार से निकलते हैं, धन्य हैं उनके माता पिता। उनकी बहन मुझसे लिपटकर रो रही हैं, हम सब टूटे हुए हैं, अमीरचंद जी ने ऐसे विशाल विचार परिवार का निर्माण किया था, सभी स्तब्ध हैं। एक दूसरे को दिलासा कोई दे भी तो कैसे ! अनर्थ हुआ है।
उनके पार्थिव शरीर को पुष्प अर्पित करते हुए मेरे हाँथ नही उठते। माननीय दत्तात्रेय जी, आदरणीय अनिल जी, अद्वैत गणनायक जी, उत्तम प्रचारने जी, अनुपम भटनागर जी, सब अपने दुख को पिये हुए।अभिजीत गोखले जी सब व्यवस्था सम्हालते हुए और संस्कार भारती परिवार के जनक बाबा योगेंद्र जी भी पहुँच गए हैं। विचार परिवार की अपार उपस्थिति है, सबकी आंखे नम हैं, हाँथ जुड़े हुए। मेरे लिए खुद पर काबू करना आज मुश्किल है।मैँ कहीं दूर अतीत की स्मृतियों में जा चुकी हूँ।
पच्चीस साल पहले की प्रथम भेंट
निश्छल शिशु जैसा भोलापन, युवाओं जैसा उत्साह, सबको जोड़ने का अपूर्व कौशल, देश भर के कलाकारों से व्यक्तिगत संपर्क, नित नवीन योजना निर्माण की अभूतपूर्व दृष्टि ! उनका दृढ़ विश्वास था कि भारत की कलाएं भारत की आत्मा है। भारतीय चेतना को कलाओं ने अब तक सुरक्षित रखा है। कला का अंतिम उद्देश्य मुक्ति है मोक्ष है किंतु सबसे बड़ा लक्ष्य है कि कलाएं चरित्र निर्माण और राष्ट्रनिर्माण में सहायक हों।
मैं अपने परिवार में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति आदर सम्मान का भाव देखती हुई बड़ी हुई थी। संस्कार भारती से जुड़ाव होना तो स्वाभाविक ही था। मैं संस्कार भारती से 1993 में जुड़ी, लेकिन अमीरचंद जी से 1997 से निरंतर संपर्क बना रहा। बनारस पटना गौहाटी कलकत्ता वे आश्चर्यजनक रूप से कहीं भी मिल जाते, अपने चिरपरिचित अंदाज़ में सबसे जुड़ते हुए सबको जोड़ते हुए, भारत वर्ष के ग्राम ग्राम तक के कलाकारों से उनका व्यक्तिगत परिचय था। संत जैसा निर्मल स्वभाव लेकिन उतने ही बड़े भविष्यदृष्टा!
तकनीक की अहमियत समझने वाले, वर्तमान को समझते हुए भविष्य के स्वप्न बुनने वाले। मुझे स्मरण है, अवार्ड वापसी के छद्म प्रपंच, पाखंडी असहिष्णुता अभियान जैसे अनेकानेक अवसरों पर उनसे स्वतंत्र विमर्श। उन चर्चाओं का निकष कैसे भूलूँ ! सोशल मीडिया की महती भूमिका की गंभीरता को समझने वाले, एक एक कार्यकर्ता को हीरे की तरह तराशने में समय देने वाले अमीर चंद जी अब नही मिलेंगे। अब वे प्रभुधाम में विश्राम कर रहे होंगे।
नवरात्रि के प्रथम दिन वे और अभिजीत गोखले जी हमारे घर, साथ भोजन कर के गए। भोजन के साथ लंबी संस्कृति चर्चा भी।उसी रात उनकी बनारस की ट्रेन थी और वहां से पूर्वोत्तर की दुर्भाग्यपूर्ण यात्रा। ऐसे ही मेरी दॄष्टि उनके बैग पर पड़ी। दो कुर्ते, एक शॉल! कुछ आयुर्वेदिक औषधियां । यही थी उनकी गृहस्थी। मैंने उन्हें टोका भी- ट्रेन में ठंड न लगे ! लेकिन वे तो वीतरागी थे। उन्हें कुछ न चाहिए था। तपस्वी देखने हों, तो संघ के प्रचारकों को देखिए।
ओढ़ना बिछौना खाना पीना सब से निर्लिप्त हो चुके ये तपस्वी समाज और देश को सर्वोपरि रखते हैं। अमीरचंद जी भी स्वयंसेवक संघ की यज्ञशाला में तप कर निकले हुए होम थे जो आहूत हो गए देश के लिए । उसी पूर्वोत्तर की गोद में । जहाँ उन्होंने कई वर्ष अथक कार्य किया था, जहाँ उनके प्राण बसते थे।
बिना सेवा कराए, सेवा करते हुए ही प्रभु धाम को चले गए ।हम सब को निःशब्द कर वे देवलोक गमन कर गए। उनके स्वप्नों का संस्कृति समाज हम सब मिल कर निर्मित करें- यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।