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- Written by S.K. Azad , Edited by Bharat Bhushan
- Category: RSS Media Cell , Jharkhand Wing
मंदिर की रक्षार्थ बलिदानों की झड़ी
रांची, 28 जुलाई : श्रीराम जन्मभूमि के साथ भारत की अस्मिता और हिन्दुओं का सर्वस्व जुड़ा है। यही कारण है कि रावण से लेकर बाबर तक जिस भी विदेशी और अधर्मी आक्रांता ने रामजन्मभूमि को अपवित्र करने का जघन्य षड्यंत्र रचा, हिन्दुओं ने तुरन्त उसी समय अपने प्राणों का उत्सर्ग करते हुए अपने इस सांस्कृतिक प्रेरणा केन्द्र की रक्षा की। जन्मभूमि पर महाराजा कुश के द्वारा बनवाया गया मंदिर भी आक्रान्ताओं का निशाना बनता रहा। यह मंदिर अपने बिगड़ते-संवरते स्वरूप में सदियों पर्यन्त आघात सहन करता रहा, परन्तु इसका अस्तित्व कोई नहीं मिटा सका।
रामजन्मभूमि मंदिर के ऊपर विदेशियों के आक्रमण यूनान के यवनों के साथ शुरु हुए थे। ईसा से तीन शताब्दी पहले ग्रीक से यवन आक्रान्ता भारत आए। राष्ट्रजीवन के प्रतीक इस मंदिर पर पहला विधर्मी आघात ईसा से 150 वर्ष पूर्व हुआ। एक विदेशी यवन मिलेन्डर ने भारत पर अपनी सत्ता जमाने के उद्देश्य से अयोध्या पर आक्रमण कर दिया। उसने समझ लिया था कि रामजन्मभूमि पर बने मंदिर को तोड़े बिना भारत की शक्ति को क्षीण नहीं किया जा सकता। इस प्रकार के आध्यात्मिक केन्द्र ही हिन्दुओं को शक्तिशाली बनने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। इस विधर्मी सेनापति ने एक प्रबल सैनिक टुकड़ी के साथ महाराजा कुश द्वारा निर्मित मंदिर को भूमिसात कर दिया।
हिन्दू समाज के प्रबल विरोध के बावजूद वह अपनी विशाल सैनिक शक्ति के बल पर जीत तो गया, परन्तु इस विजय के बाद तीन मास के भीतर ही उसे हिन्दुओं की संगठित शक्ति के आगे झुकना पड़ा। शुंग वंश के पराक्रमी हिन्दू राजा द्युमदसेन ने अपनी प्रचंड सेना के साथ उसे घेर लिया। इस वीर राजा ने न केवल जन्मभूमि को ही मुक्त करवाया, अपितु मिलेन्डर की राजधानी कौशांभी पर अपना अधिकार जमाकर उसकी सारी सेना को समाप्त कर दिया। मिलेन्डर को भी यमलोक पहुंचाकर द्युमदसेन ने हिन्दू समाज की संगठित शक्ति का परिचय देकर राममंदिर के अपमान का बदला ले लिया।
मंदिर तो मुक्त हो गया परन्तु उसके जीर्णोद्धार की कोई व्यवस्था नहीं हो सकी। विदेशी आक्रमणों से जूझते रहने के कारण हिन्दू राजा इस ओर ध्यान नहीं दे सके। तो भी मंदिर के खण्डहरों में ही गर्भगृह स्थान पर एक पेड़ के नीचे हिन्दू अपने आराध्य देव की पूजा करते रहे।
ईसा से एक शताब्दी पूर्व उज्जैन के राजा विक्रमादित्य ने श्रीराम जन्मभूमि पर फिर से वैभवशाली मंदिर बनाने का बीड़ा उठाया। विदेशी आक्रांता शकों को पूर्णतया परास्त करके उन्हें भारत की सीमाओं से बाहर खदेड़ने का कार्य सम्पन्न करने के पश्चात् शकारि विक्रमादित्य ने अयोध्या की प्राचीन सीमाओं को ढूंढने के लिए एक सर्वेक्षण दल की स्थापना की। प्राचीन ग्रंथों को आधार मानकर रामजन्मभूमि का वास्तविक स्थान खोज पाना बहुत कठिन काम था। प्राचीन शास्त्रों के आधार पर जन्मभूमि के निकटवर्ती शेषनाथ मंदिर की कंटीली झाड़ियों के मध्य में से इस स्थान को खोज लिया गया। शास्त्रों में वर्णित मार्गों को नापा गया, रहस्य खुलते चले गए।
लक्ष्मण घाट के निकट एक ऊंचे टीले की खुदाई की गई, उत्खनन कार्य से प्राचीन मंदिर के अवशेष मिलते चले गए। भूगर्भ में समाए हुए मंदिर के कसौटी के 84 खम्भे भी प्राप्त हो गए। इन्हीं खम्भों को आधार स्तम्भ बनाकर विक्रमादित्य ने एक अति विशाल राम मंदिर का निर्माण करवा दिया। भारत का विराट राष्ट्रपुरुष फिर से स्वाभिमान के साथ मस्तक ऊंचा करके खड़ा हो गया। विक्रमादित्य की योजनानुसार भारत के प्रत्येक पंथ, जाति और क्षेत्र के सहयोग से अनेक मंदिर बनना प्रारम्भ हो गए। आज भी अयोध्या में इन हजारों मंदिरों को देखा जा सकता है।
सम्राट विक्रमादित्य ने सम्पूर्ण भारत को एक सूत्र में पिरोकर राष्ट्रीय एकता का अद्भुत एवं सफल प्रयास किया। अयोध्या सम्पूर्ण भारत का एक मूर्तिमान स्वरूप बन गई। विविधता में एकता का प्रतीक अयोध्या आज भी अपने इस एकत्व भाव के साथ भारत के एक राष्ट्र होने का प्रमाण प्रस्तुत कर रही है। अयोध्या के मध्य में राम का मंदिर और चारों ओर भारत के सभी सम्प्रदायों के मंदिर, पूजास्थल और अखाड़े इसी तथ्य को सारे संसार के समक्ष उजागर करते हैं कि सभी पंथों के आदि महापुरुष श्रीराम भारत के राष्ट्रजीवन के प्रतीक हैं।