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आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में युवाओं की सातत्य कौशल्य की भूमिका

आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में युवाओं की सातत्य कौशल्य की भूमिकारांची, 19 जुलाई  : किसी भी राष्ट्र के सामाजिक- आर्थिक तथा सांस्कृतिक उन्नति में युवाओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है। परिवर्तन के सबसे बड़े वाहक युवा वर्ग ही होते हैं। युवा शक्ति देश और समाज की रीढ़ होती है। युवा देश और समाज को नए शिखर पर ले जाने का सामर्थ रखते हैं। युवा देश का वर्तमान हैं, तो भूतकाल और भविष्य के सेतु भी हैं। युवा देश और समाज के जीवन मूल्यों के प्रतीक हैं। युवा गहन ऊर्जा और उच्च महत्वाकांक्षाओं से भरे हुए होते हैं। उनकी आंखों में भविष्य के इंद्रधनुषी स्वप्न होते हैं। समाज को बेहतर बनाने और राष्ट्र के निर्माण में सर्वाधिक योगदान युवाओं का ही होता है। युवा जितना ही राष्ट्रप्रेमी उन्नत व कौशलयुक्त होगा,तरक्की व उन्नति की संभावनाएं भी उतनी ही ज्यादा प्रबल होंगी।
इतिहास साक्षी है कि बड़े से बड़े परिवर्तन युवाओं की इच्छा शक्ति के कारण सहज रूप से ही संभव हो सके हैं। बस जरूरत है युवाओं का सही व सकारात्मक मार्गदर्शन करते हुए उन्हें इस दिशा में प्रेरित करने की।युवाओं को उनके जीवन का प्रभार लेने के लिए सशक्त बनाना महत्वपूर्ण है। यह जरूरी है कि युवकों की क्षमता के अनुसार रोजगार के अवसर मुहैया कराए जाएं ताकी वे जीवन में किसी गलत रास्ते पर न जा सकें। सस्ती और गुणवत्तायुक्त शिक्षा और प्रशिक्षण तक पहुँच की कमी के कारण हमारे समाज में बेरोजगारी और रोजगार की समस्या व्याप्त है। राष्ट्रीय युवा कौशल दिवस के उपलक्ष्य पर माननीय प्रधानमंत्री जी ने युवाओं को संबोधित करते हुए अपील की है कि राष्ट्र की युवा शक्ति को आत्मनिर्भर भारत के निर्माण में एक मजबूत आधारस्तंभ के रूप में प्रण पूर्वक आगे आने की आवश्यकता है। हमारे छात्रों को महापुरुषों से प्रेरणा लेनी चाहिए कि उनमें अपार आत्मबल था तभी वे सशक्त व आत्मनिर्भर बन पाए। नए भारत के निर्माण के लिए आज की युवापीढ़ी की स्किल व कार्य-कौशल्य को विकसित कर राष्ट्र के उत्थान हेतु समर्पित करने की आवश्यकता है। कोरोनाकाल के इस संकट के दौर में विश्व संस्कृति के साथ ही कार्य की प्रकृति भी बदल गई है। लिहाजा बदलती नई टेक्नोलॉजी ने सभी पर अपना एक अलग ही असर दिखाया है। आज के दौर में बिज़नेस और बाज़ार काफ़ी तेजी से बदल रहे हैं। ऐसे में समझ में नहीं आता कि सार्थक व उपयोगी कैसे रहा जा सकता है? कोरोना महामारी के इस भयावह परिस्थिति में तो ये सवाल और भी अहम हो गया है। जवाब स्वरूप इसका एक ही मंत्र - स्किल, री-स्किल और अपस्किल है। स्किल का अर्थ एक प्रकार का नया हुनर सीखना है। जैसे कि आपने लकड़ी के एक टुकड़े से कुर्सी बनाना सीखा, तो ये आपका हुनर हुआ। आपने लकड़ी के उस टुकड़े की कीमत भी बढ़ा दी यानी वैल्यू एडिशन भी किया । स्किल व्यक्ति के काम की ही नहीं उनकी प्रतिभा एवं प्रभाव को भी बेहतर बना देती है। कुछ लोग ज्ञान और स्किल को लेकर के हमेशा भ्रम में रहते हैं, या भ्रम पैदा करते हैं।
आज दुनिया भर में कई क्षेत्रों में लाखों कुशल व पेशेवर मानवसंसाधन की जरूरत है। खासतौर से हेल्थ सेक्टर में तो और बहुत बड़ी संभावनाएं बन रही हैं। हर छोटी ब़ड़ी स्किल आत्मनिर्भर भारत बनने में अवश्य ही सहायक होगी। आत्मनिर्भर भारत अभियान को सफल बनाने के लिए समस्त नागरिकों के साथ युवाओं को प्रेरित करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने जिस तरह से लक्ष्य साधक चार एल यानी लैंड, लेबर, लिक्विडिटी और लॉ से जुड़ी बारीकियों पर जोर देते हुए इकोनॉमी, इंफ्रास्ट्रक्चर, सिस्टम, डेमोग्राफी और डिमांड जैसे पांच पिलरों को मजबूती देने का आह्वान किया है, उससे यह साफ है कि इन नौ शब्दों की सीढ़ियों के सहारे आत्मनिर्भरता के लक्ष्य को हासिल किया जा सकता है। इसलिए इस पर अविलम्ब फोकस किये जाने की जरूरत है। युवा की बाहों में असंभव को संभव करने की जज्बा व साहस होती है। सजग व राष्ट्र निष्ठा से प्रेरित युवा के सामने कोई भी कठिन से कठिन चुनौती क्यों ना हो वह अपने अदम्य साहस एवं कौशल के द्वारा उसका सामना करने में अपने आप को सक्षम साबित कर सकता है।

आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता युवाओं के दिलो-दिमाग में वैविध्य सांस्कृतिक एवं राष्ट्रीय विरासत की सपनों को संजोकर गौरवपूर्ण अनुभूति द्वारा ही संभव हो सकती है।वास्तव में, वैश्विक महामारी कोरोना के प्रकोप से अभिप्रेरित लगभग चार माह के चरणबद्ध राष्ट्रीय लॉकडाउन से परेशान आवाम को पीएम मोदी ने जो आत्मनिर्भर भारत बनाने का मूल मंत्र दिया है, उसकी सफलता सुनिश्चित करने के लिए अब हरेक भारतवासी को आगे आना चाहिए और अपना सर्वोत्तम देने की खातिर सदैव तत्पर रहना चाहिये। हमें यह समझना चाहिए कि भारत जब आत्मनिर्भरता की बात करता है तो वह आत्म केंद्रित व्यवस्था की वकालत कदापि नहीं करता बल्कि भारत की आत्मनिर्भरता में संसार के सुख-शांति, सहयोग और अमन-चैन की चिंतन होती है। भारत के चिंतन, लक्षण व कार्यों का प्रभाव विश्वकल्याण पर पड़ता है। निःसन्देह, कोरोना वायरस के प्रकोप ने दुनिया के समक्ष जो अकल्पनीय और अभूतपूर्व संकट पैदा कर दिया है, उसके मुकाबले हारना, थकना, टूटना और बिखरना हम सभी भारतवासी का स्वभाव ही नहीं है। इसलिए हम लोग यदि इसको जीतने में जल्दी विजय न प्राप्त कर पाएं तो भी इसके साथ-साथ अपेक्षित सावधानी बरतते हुए जीने के प्रयत्नों को भी बढ़ावा देंगे। समुपस्थित चुनौतियों का सामना हम अपने साहस व कौशल के द्वारा ही कर सकते हैं। यह सत्य है की चुनौतियां सदैव अपने साथ अवसर लेकर उपस्थित होती हैं। चुनौतियों को अवसर में तब्दील करने की कला ही तो कौशल है। अपनी योग्यता व कुशलता के द्वारा ही तो हम हर परीक्षाओं में सफल होते हैं । एक सफल व्यक्ति की बहुत बड़ी पहचान होती है कि वह अपने कौशल को बढ़ाने का कोई भी मौका जाने नहीं देता और सदैव नया मौका ढूंढता रहता है। जिस युवाओं में कौशल के प्रति अगर आकर्षण नहीं है, कुछ नया सीखने की ललक नहीं है तो उसका प्रवाहमान जीवन ठहर सा जाएगा। जीवन में रुकावट आ जाएगी। एक प्रकार से व्यक्ति अपने जीवन व व्यक्तित्व को बोझ सा बना देगा। खुद के लिए ही नहीं अपने स्वजनों के लिए भी बोझ बन जाएगा। अतः अब वह समय आ गया है जब विभिन्न विधाओं में पारंगत होकर महाभारत के अर्जुन की भांति लक्ष्यभेदन की दिशा में आगे बढ़ें।
कौशल के प्रति आकर्षण जीवन जीने की वास्तविक ताकत देता है, जीने का उत्साह देता है। ज्ञान व कौशल केवल रोजी-रोटी और पैसे कमाने का जरिया मात्र नहीं है। जीने के लिए कौशल हमारी प्रेरणा बनता है। यह हमें नवीन ऊर्जा देने का काम करती हैं। आत्मनिर्भर भारत अभियान की सफलता राष्ट्र के नागरिकों द्वारा राष्ट्र के प्रति कर्तव्यों को आत्मसात् करते हुए स्वदेशी व कौशल के मार्ग पर चलकर ही प्राप्त की जा सकती है। हमें हर हाल में वैज्ञानिक उपलब्धियों के साथ-साथ भारतीय व प्राचीन परंपरागत विभिन्न कौशलयुक्त विधाओं को भी समन्वित रूप से साथ लेकर आगे बढ़ना होगा जिससे विकराल होती समस्या का उचित व उपयोगी समाधान मिल सके।

भारद्वाज शुक्ल

पीएचडी रिसर्च स्कॉलर,रूरल डेवलपमेंट,रांची विश्वविद्यालय 


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