राष्ट्रीय परिपेक्ष में वर्तमान मकर संक्रांति : नरेंद्र सहगल
रांची, 14 जनवरी : तमसो मा ज्योतिर्गमय - धारा 370 का अंधकार समाप्त || असतो मा सद्गमय - श्री राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त || मृत्योर्मामृतम् गमय - नागरिकता संशोधन अधिनियम, मौत का साया समाप्त ।
पर्व/त्यौहार भारत की सांस्कृतिक पहचान हैं। अखंड भारत के विस्तृत भू-भाग में प्रायः वर्ष भर संपन्न होने वाले इन उत्सवों का संबंध किसी व्यक्ति विशेष से नहीं होता। देश के कोने-कोने में मनाए जाने वाले यह पर्व प्रकृति, पर्यावरण, राष्ट्र की विजय, सुरक्षा और सामाजिक एकता के परिचायक हैं। अनेक रीति-रिवाजों से परिपूर्ण इन त्यौहारों के समय समूचे विश्व को भारत की विविधता में एकता के साक्षात दर्शन हो पाते हैं। मकर संक्रांति महोत्सव अर्थात् मकर संक्रांति भगवान भास्कर (सूर्य) के तेज, प्रकाश और ऊर्जा से प्रेरणा लेने का अवसर माना गया है । इस दिन सूर्य देव का धनु राशि से निकल कर मकर राशि में प्रवेश होता है। दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। शीत लहरें समाप्त होने लगती हैं। इस समय को भारत में बहुत ही पवित्र माना जाता है। अखंड ब्रह्मचारी भीष्म पितामह ने इसी अवसर पर अपना शरीर छोड़ा था।
मकर संक्रांति के इस पवित्र अवसर पर भारतीय विशेषतया हिन्दू समाज से संबंधित पंथों एवं जातियों के लोग पवित्र नदियों व सरोवरों में स्नान करते हैं। समाज के अभावग्रस्त लोगों में धन, अनाज एवं वस्त्रादि का दान करते हैं। रात्रि में गली-मोहल्ले के लोग एकत्रित होकर सामूहिक यज्ञ करते हैं। अतः यह त्यौहार पारिवारिक, सामाजिक तथा राष्ट्र की सांस्कृतिक एकता का आधार भी है।
भारतीय संस्कृति में इस राष्ट्रीय पर्व की व्यवस्था इस प्रकार की गई है। “तमसो मा ज्योतिर्गमय” अर्थात् अंधकार से प्रकाश की ओर, “असतो मा सद्गमय” अर्थात् असत्य से सत्य की ओर. “मृत्योर्मामृतम् गमय” अर्थात् मृत्यु से अमृत (जीवन) की ओर। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक माधवराव सदाशिव गोलवलकर (श्री गुरु जी) के शब्दों में - “यह राष्ट्रीय पर्व हमारे राष्ट्रीय जीवन में परस्पर स्नेह को पुष्ट करने वाला है। समाज के सारे भेदभाव बुलाकर एकात्मता का साक्षात्कार कराने का उदार सत्कार देने वाला यह दिन है।”
राष्ट्र के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखें तो इस बार मकर संक्रांति का पर्व अनेक परिवर्तन लेकर आया है। अनेक असहाय समस्याएं सुलझ गई हैं। अलगाववादी धारा 370 का हटना, श्री राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण का मार्ग प्रशस्त होना और नागरिकता संशोधन अधिनियम पारित होना इत्यादि ऐसे महत्वपूर्ण कार्य हैं, जिनसे यह मकर संक्रांति पर्व परिवर्तन का महान अवसर बन गया है। राष्ट्रीय संस्कृति की ऐतिहासिक विजय है।
तमसो मा ज्योतिर्गमय : भारत के अभिन्न भाग कश्मीर में अनुच्छेद 370 का घोर राष्ट्र विरोधी अंधकार छाया हुआ था। गत 73 वर्षों से छाए इस अलगाववादी अंधेरे में पाकिस्तान भी केसर की कियारियों में जिहादी आग लगा रहा था। इस अनुच्छेद के काले तम में साधारण नागरिकों के मौलिक अधिकारों को समाप्त कर दिया था । कुछ मुट्ठी भर मजहबी नेता ही मौज मस्ती कर रहे थे।
वर्तमान सरकार ने राजनीति की दिशा बदल कर अनुच्छेद 370 के अंधकार को एक ही झटके में समाप्त कर लोकतंत्र और नागरिकों के मौलिक अधिकारों के प्रकाश को बिखेर दिया। अब जम्मू कश्मीर ज्योतिर्गमय हो गया है। सारे देश में एक निशान, एक विधान और एक प्रधान का उद्घोष करने वाले अमर बलिदानी डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बलिदान का संदेश है, यह मकर संक्रांति।
असतो मा सद्गमय : एक मकर संक्रांति पर्व सन् 1992 में भी आया था। जब संगठित हिन्दू शक्ति के प्रतीक कारसेवकों ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर आक्रान्ता द्वारा खड़े किए गए ‘बाबरी ढांचे’ को हटाकर असत्य पर सत्य की जीत दर्ज की थी। एक मकर संक्रांति का पर्व इस वर्ष भी आया है, जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण का मार्ग प्रशस्त करके असत्य से सत्य की ओर जाने का सर्वसम्मत फैसला सुना दिया है।
अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि मंदिर पर छाए अधर्मी, विदेशी और दहशतगर्दी अंधेरे को मिटाने के लिए हिन्दू समाज गत 494 वर्षों से निरंतर अपने बलिदान दे रहा था। इस कालखंड में हुए संघर्ष में लगभग पांच लाख हिन्दुओं ने अपने प्राण न्योछावर किए हैं। अब सत्य की विजय हुई है। इस वर्ष यह मकर संक्रांति पर्व निराशा से आशा की ओर, हीनता से श्रेष्ठता की ओर, पराजय से विजय की ओर जाने का गौरवशाली संदेश लेकर आया है।
मृत्योर्मामृतम् गमय : भारत माता के दुर्भाग्यशाली विभाजन के समय पश्चिमी पंजाब (पाकिस्तान) में रह जाने वाले हिन्दुओं पर अमानवीय अत्याचार हो रहे थे। हिन्दू बहन बेटियों का सतीत्व सुरक्षित नहीं था। यह अत्याचार अभी भी हो रहे हैं। अनेक हिंन्दू परिवार अपने धर्म और सम्मान को बचाने के लिए भारत में शरण लेने आए हैं। मौत के साए में जी रहे इन हिन्दुओं को अमृतमयी जीवन प्रदान करने के लिए भारत सरकार ने नागरिकता संशोधन अधिनियम बनाया है। यह मृत्यु पर विजय जीवन की विजय है।
यह मकर संक्रांति पर्व पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में सताए जा रहे हिन्दुओं, सिक्खों, पारसियों, जैनियों, बौद्ध और ईसाइयों के लिए वरदान बन आया है। भारत में शरण लेने वाले इन लोगों को भारत की नागरिकता मिल रही है। जो काम बहुत वर्ष पूर्व हो जाना चाहिए था, वह इस मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर हो रहा है। यह धर्म की अधर्म पर विजय है। यह जीवन की मृत्यु पर विजय है। यही मकर संक्रांति का संदेश है।
भविष्य की मकर संक्रांति : इस वर्ष की मकर संक्रांति के हर्षोल्लास में समस्त भारतवासियों में यह विश्वास जागृत हुआ है कि भविष्य में भी प्रत्येक मकर संक्रांति पर राष्ट्र की विजय, सामाजिक एकता और धार्मिक सामंजस्य का कोई ना कोई प्रसंगअवश्य आएगा। भारत के 135 करोड़ नागरिक एक राष्ट्र पुरुष के रूप में खड़े होकर राष्ट्रीय स्वाभिमान का अनुभव करेंगे।
राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर राष्ट्रीय एकता का प्रतीक बनेगा। कश्मीर से भगाए गए लाखों हिन्दू अपने घरों में लौटेंगे। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश सहित अनेक देशों में हिन्दू उत्पीड़न बंद होगा। भारत में समान नागरिक संहिता का स्वर्णिम युग भी आएगा और एक समय ऐसा भी आएगा, जब ‘अखंड भारत’ के कोने कोने में मकर संक्रांति एवं अन्य सभी त्यौहार मनाए जाएंगे। पाठकों से निवेदन है कि मकर संक्रांति के इस संदेश को प्रत्येक भारतवासी तक पहुंचा दें।
नरेंद्र सहगल
वरिष्ठ पत्रकार, लेखक एवं स्तम्भकार