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अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक - युगाब्द 5121

रांची , 21 मार्च :  14 मार्च 2020 , बेंगलुरु  : अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल बैठक - युगाब्द 5121

प्रस्ताव -1 भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर राज्य में पूर्ण रूप से लागू करने एवं राज्य के पुनर्गठन का निर्णय – एक स्वागतयोग्य कदम

संघ का अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, सम्मानीय राष्ट्रपति के संवैधानिक आदेशों के द्वारा भारतीय संविधान को जम्मू कश्मीर राज्य में पूर्ण रूप से लागू करने तथा तदुपरांत संसद के दोनों सदनों के अनुमोदन के पश्चात् अनुच्छेद 370 को निष्प्रभावी करने के निर्णय का हृदय से स्वागत करता है। राज्य का जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख ऐसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में पुनर्गठन का निर्णय भी एक सराहनीय कदम है। अ.भा.का.मं. इस साहसिक एवं ऐतिहासिक निर्णय के लिए केंद्र सरकार एवं राष्ट्रहित में समर्थन देकर अपनी परिपक्वता का परिचय देनेवाले सभी राजनैतिक दलों का अभिनन्दन करता है। माननीय प्रधानमन्त्री तथा उनके साथियों द्वारा इस विषय में दिखाई गई राजनैतिक इच्छाशक्ति व दूरदर्शिता प्रशंसनीय है।

यद्यपि भारतीय संविधान के समस्त प्रावधान देश के सभी क्षेत्रों में समान रूप से लागू होने अपेक्षित थे, परन्तु विभाजन के तुरंत पश्चात् पाकिस्तानी आक्रमण की तात्कालिक एवं असाधारण परिस्थिति में अनुच्छेद 370 को एक अस्थायी प्रावधान के रूप में संविधान में जोड़ा गया। कालान्तर में अनुच्छेद 370 की आड़ में बड़ी संख्या में संविधान के अनुच्छेदों को जम्मू-कश्मीर राज्य में या तो लागू ही नहीं किया गया अथवा संशोधित रूप में लागू किया गया राष्ट्रपति के आदेशों द्वारा अनुच्छेद 35A जैसे प्रावधानों को मनमाने रूप से संविधान में जोड़ने जैसे कदमों के कारण अलगाववाद के बीज बोये गए। इन संवैधानिक विसंगतियों के कारण अनुसूचित जाति, जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग, गोरखा, महिला, सफाई कर्मचारी तथा पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थी आदि घोर भेदभाव का सामना कर रहे थे। जम्मू एवं लद्दाख क्षेत्र को राज्य विधानसभा में आनुपातिक प्रतिनिधित्व तथा संसाधनों के आवंटन और निर्णयप्रक्रिया में समुचित सहभागिता से वंचित कर दिया गया था। इन सभी गलत नीतियों के कारण हमने देखा कि राज्य में सर्वत्र कट्टरवाद व आतंकवाद की व्याप्ति तथा राष्ट्रीय शक्तियों की पूर्ण उपेक्षा दिखाई देने लगी।

अ.भा.कार्यकारी मंडल का सुनिश्चित मत है कि हाल ही में लिये गए निर्णय एवं उनके क्रियान्वयन से ऊपर उल्लेखित संवैधानिक तथा राजनैतिक विसंगतियाँ समाप्त हो जाएंगी। कार्यकारी मंडल का यह भी विश्वास है कि उपरोक्त निर्णय भारत की अवधारणा 'एक राष्ट्र - एक जन ' के अनुरूप है और संविधान निर्माताओं द्वारा प्रस्तावना में वर्णित आकांक्षा 'हम भारत के लोग ......' को पूर्ण करनेवाला है।

अ.भा. कार्यकारी मंडल का यह भी मत है कि राज्य के पुनर्गठन के साथ तीनों क्षेत्रों में रहनेवाले सभी वर्गों के सामाजिक एवं आर्थिक विकास की नई संभावनाएँ खुली हैं। राज्य के पुनर्गठन से लद्दाख क्षेत्र की जनता की दीर्घकालीन आकांक्षाओं की पूर्ति हुई है, साथ ही उनके समग्र विकास का मार्ग प्रशस्त हो गया है। अ.भा. कार्यकारी मंडल आशा करता है कि विस्थापितों एवं शरणार्थियों की अपेक्षाओं की भी शीघ्र पूर्ति की जाएगी। कश्मीर घाटी के विस्थापित हिन्दू समाज के सुरक्षित एवं सम्मानपूर्ण पुनर्वसन की प्रक्रिया शीघ्रातिशीघ्र प्रारम्भ करनी चाहिए।

यह ऐतिहासिक तथ्य है कि महाराजा हरिसिंह ने ‘अधिमिलन पत्र' पर हस्ताक्षर कर भारत में राज्य के विलय की प्रक्रिया को पूर्ण कर दिया था। अनुच्छेद 370 के दुरुपयोग से उत्पन्न समस्याओं को दूर करने; राष्ट्रीय एकात्मता, संविधान तथा राष्ट्रध्वज के सम्मान की रक्षा हेतु डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी एवं पंडित प्रेमनाथ डोगरा के नेतृत्व में प्रजा परिषद् आंदोलन के सत्याग्रहियों और शेष भारत के राष्ट्रभक्त समाज ने संघर्ष किया। विगत सत्तर वर्षों में राज्य की राष्ट्रीय शक्तियों ने शेष भारत के साथ मिलकर अलगाववाद एवं आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष को जारी रखा और उनमें से अनेकों ने अपने प्राण भी न्योछावर किये सेना तथा सुरक्षा बलों के हजारों जवानों ने देश की एकता एवं संप्रभुता की रक्षा के लिए शौर्य एवं प्रतिबद्धता का परिचय दिया और सर्वोच्च बलिदान भी दिये। अ.भा. कार्यकारी मंडल इन सभी को कृतज्ञतापूर्वक श्रद्धासुमन अर्पित करता है।

अ.भा. कार्यकारी मंडल देशवासियों का आवाहन करता है कि संविधान की सर्वोच्चता एवं मूलभावना को स्थापित करने के लिए वे राजनैतिक मतभिन्नताओं से ऊपर उठें और जम्मू-कश्मीर तथा लद्दाख की विकासयात्रा में बढ़-चढ़कर योगदान करते हुए राष्ट्र की एकता एवं अखंडता को पुष्ट करें। अ.भा. कार्यकारी मंडल सरकार का भी आवाहन करता है कि क्षेत्र के नागरिकों की सभी प्रकार की आशंकाओं को दूर कर परिणामकारी, न्यायसंगत शासनव्यवस्था और आर्थिक विकास के द्वारा उनकी आकांक्षाओं की पूर्ति करे।

प्रस्ताव क्र. 2 - श्रीराम जन्मस्थान पर मंदिर निर्माण - राष्ट्रीय स्वाभिमान का प्रतीक

संघ के अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल का मानना है कि माननीय सर्वोच्च न्यायालय के सर्वसम्मत निर्णय से सम्पूर्ण राष्ट्र की आकांक्षाओं के अनुरूप श्रीराम जन्मस्थान, अयोध्या, पर भव्य मंदिर के निर्माण की सब बाधाएँ दूर हो गई हैं। राम जन्मस्थान के संबंध में 9 नवंबर 2019 को माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने जो निर्णय दिया है, वह न्यायिक इतिहास के महानतम निर्णयों में से एक है। माननीय न्यायाधीशों ने सुनवाई के दौरान उत्पन्न की गई अनेक प्रकार की बाधाओं के बावजूद अतुलनीय धैर्य एवं सूझ-बूझ का परिचय देते हुए एक अत्यंत संतुलित निर्णय दिया है। अ.भा.का.मं. इस ऐतिहासिक निर्णय के लिए मा. सर्वोच्च न्यायालय का हार्दिक अभिनंदन करता है।

श्रीराम जन्मस्थान के पक्ष में प्रबुद्ध अधिवक्ताओं ने जिस समर्पण, निष्ठा व विद्वत्ता के साथ साक्ष्यों व तर्कों को रखा, उसके लिए वे सभी साधुवाद के पात्र हैं। आनंद का विषय है कि समाज के किसी भी वर्ग ने इस निर्णय को अपनी जय या पराजय के रूप में न लेते हुए इसे देश, न्याय व संविधान की विजय के रूप में स्वीकार किया। अ.भा.का.मं. इस परिपक्वतापूर्ण व्यवहार के लिए संपूर्ण देश के नागरिकों का अभिनन्दन करता है।

‘श्रीराम जन्मस्थान मन्दिर का संघर्ष’ वैश्विक इतिहास के दीर्घकाल तक चलने वाले संघर्षों में अनोखा है। सन् 1528 से निरंतर चले इस संघर्ष में लाखों रामभक्तों ने बलिदान दिये। ये संघर्ष कभी किन्हीं महापुरुषों की प्रेरणा से हुए तो कभी स्वयंस्फूर्त भी रहे। सन् 1950 से प्रारंभ हुआ न्यायिक संघर्ष और 1983 से प्रारंभ हुआ जन-आंदोलन निर्णायक स्थिति प्राप्त करने तक सतत चलता रहा। विश्व इतिहास के इस महानतम आंदोलन को अनेक महापुरुषों ने अपने अनथक परिश्रम व समर्पण से सफलता के शिखर तक पहुँचाया है। अ.भा.कार्यकारी मंडल उन सभी ज्ञात-अज्ञात बलिदानियों का इस अवसर पर पुण्यस्मरण करना व श्रद्धांजलि देना अपना पावन कर्तव्य समझता है।

न्यायालय का निर्णय आने के उपरांत सभी वर्गों का विश्वास प्राप्त कर सद्भावपूर्ण ढंग से उसे स्वीकार करा लेना किसी भी सरकार के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य था। जिस धैर्य और साहस के साथ सरकार ने सबका विश्वास प्राप्त किया, उसके लिए कार्यकारी मंडल केंद्र सरकार एवं वर्तमान राजनैतिक नेतृत्व का हार्दिक अभिनंदन करता है। सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय तथा रामभक्तों की भावनाओं के अनुरूप ‘श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र’ नामक एक नए न्यास का गठन, शासन-नियंत्रित न्यास के रूप में न करके इसे समाज द्वारा संचालित बनाना व प्रशासन को सहयोगी की भूमिका में लाना सरकार की दूरदर्शिता का परिचायक है। जिन पूज्य संतों के मार्गदर्शन में यह आन्दोलन चला, उन्हीं के नेतृत्व में ही मंदिर निर्माण के कार्य को आगे बढ़ाने का निर्णय लेना भी प्रशंसनीय है अ.भा.का.मं. का यह भी विश्वास है कि यह न्यास श्रीराम जन्मस्थान पर भव्य मंदिर और परिसर क्षेत्र के निर्माण-कार्य को शीघ्रातिशीघ्र संपन्न करेगा। कार्यकारी मंडल का यह भी विश्वास है कि इस पुनीत कार्य में सभी भारतीय एवं सम्पूर्ण विश्व के रामभक्त सहभागी होंगे।

यह निश्चित है कि इस पावन मंदिर का निर्माण-कार्य संपन्न होने के साथ-साथ समाज में मर्यादा, समरसता, एकात्मभाव और मर्यादापुरुषोत्तम राम के जीवनादर्शों के अनुरूप जीवन जीने का भाव बढ़ेगा तथा भारत विश्व में शांति, सद्भाव और समन्वय स्थापित करने के अपने दायित्व को पूर्ण कर सकेगा।

प्रस्ताव -3- नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 – भारत का नैतिक व संवैधानिक दायित्व

संघ का अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल, पड़ोसी इस्लामिक देशों पाकिस्तान, बाँग्लादेश एवं अफगानिस्तान में पांथिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी व ईसाइयों को भारत की नागरिकता देने की प्रक्रिया की जटिलताओं को समाप्त कर सरल बनाने हेतु, नागरिकता संशोधन अधिनियम - 2019 पारित करने पर भारतीय संसद तथा केंद्र सरकार का हार्दिक अभिनंदन करता है।

1947 में भारत का विभाजन पांथिक आधार पर हुआ था। दोनों देशों ने अपने यहाँ पर रह रहे अल्पसंख्यकों को सुरक्षा, पूर्ण सम्मान तथा समान अवसर का आश्वासन दिया था। भारत की सरकार एवं समाज दोनों ने अल्पसंख्यकों के हितों की पूर्ण रक्षा की तथा सरकार ने उसके भौगोलिक क्षेत्र में रह रहे अल्पसंख्यकों की सुरक्षा एवं विकास के लिए संवैधानिक प्रतिबद्धता सहित विशिष्ट नीतियाँ भी बनाईं। दूसरी ओर, भारत से अलग होकर निर्मित हुए देश नेहरु-लियाकत समझौते और समय-समय पर नेताओं के आश्वासनों के बावजूद ऐसा वातावरण नहीं दे सके। इन देशों में रह रहे अल्पसंख्यकों का पांथिक उत्पीड़न, उनकी संपत्तियों पर बलपूर्वक कब्जा तथा महिलाओं पर अत्याचार की निरंतर घटनाओं ने उन्हें नए प्रकार की गुलामी की ओर धकेल दिया। वहाँ की सरकारों ने भी अन्यायपूर्ण कानून एवं भेदभावपूर्ण नीतियाँ बनाकर इन अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न को बढ़ावा ही दिया। परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में इन देशों के अल्पसंख्यक भारत में पलायन को बाध्य हुए। इन देशों में विभाजन के बाद अल्पसंख्यकों के जनसंख्या प्रतिशत में तीव्र गिरावट का तथ्य उसका स्वयंसिद्ध प्रमाण है।

यह सदैव स्मरण रखना चाहिए कि भारत की संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्धन तथा स्वाधीनता के संघर्ष में इन क्षेत्रों में रहने वाले परंपरागत भारतीय समाज का भी महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। इस कारण भारतीय समाज एवं भारत सरकार का यह नैतिक तथा संवैधानिक दायित्व बनता है कि वे इन प्रताड़ित अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करें। पिछले 70 वर्षों में इन बंधुओं के लिए ससंद में अनेक बार चर्चा हुई तथा विभिन्न सरकारों द्वारा समय-समय पर अनेक प्रावधान भी किए गए। परंतु प्रक्रिया की जटिलताओं के चलते बड़ी संख्या में लोग आज भी नागरिकता के अधिकार से वंचित रहकर अनिश्चितता एवं भय के वातावरण में जी रहे हैं। वर्तमान संशोधन के परिणामस्वरूप ये लोग सम्मानपूर्ण जीवन जी सकेंगे।

सरकार द्वारा संसद में चर्चा के दौरान तथा बाद में समय-समय पर यह स्पष्ट किया गया है कि इस कानून द्वारा भारत का कोई भी नागरिक प्रभावित नहीं होगा। कार्यकारी मंडल सन्तोष व्यक्त करता है कि इस अधिनियम को पारित करते समय उत्तर-पूर्व क्षेत्र के निवासियों की आशंकाओं को दूर करने के लिए आवश्यक प्रावधान भी किये गए हैं। यह संशोधन इन तीन देशों में पांथिक आधार पर उत्पीड़ित होकर भारत आए इन दुर्भाग्यपूर्ण लोगों को नागरिकता देने के लिए है तथा किसी भी भारतीय नागरिक की नागरिकता वापस लेने के लिए नहीं है। परंतु, जिहादी–वामपंथी गठजोड़, कुछ विदेशी शक्तियों तथा सांप्रदायिक राजनीति करनेवाले स्वार्थी राजनैतिक दलों के समर्थन से, समाज के एक वर्ग में काल्पनिक भय एवं भ्रम का वातावरण उत्पन्न करके देश में हिंसा तथा अराजकता फैलाने का कुत्सित प्रयास कर रहा है।

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल इन कृत्यों की कठोर शब्दों में निंदा करता है तथा संबंधित सरकारों से यह माँग करता है कि देश के सामाजिक सौहार्द एवं राष्ट्रीय एकात्मता को खंडित करने वाले तत्वों की समुचित जाँच कराकर उपयुक्त कार्रवाई करें।

अखिल भारतीय कार्यकारी मंडल समाज के सभी वर्गों, विशेषकर जागरूक एवं जिम्मेदार नेतृत्व का आवाहन करता है कि इस विषय को तथ्यों के प्रकाश में समझें एवं समाज में सौहार्दपूर्ण वातावरण बनाए रखने और राष्ट्रविरोधी षड्यंत्रों को विफल करने में सक्रिय भूमिका निभाएँ।


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