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शिकागो।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ मोहन मधुकर भागवत बोले- अगर शेर अकेला है तो जंगली कुत्ते आक्रमण करेंगे और उसे नष्ट कर सकते हैं।संघ प्रमुख ने कहा कि हिंदू हजारों सालों से पीड़ित थे क्योंकि वे अपने बुनियादी सिद्धांतों और आध्यात्मिकता का अभ्यास करना भूल गए थे।संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हिंदुओं की प्रभुत्व की कोई आकांक्षा नहीं है और समुदाय के रूप में काम करने पर ही समाज समृद्ध होगा। स्वामी विवेकानंद के BHARAT VSK 08 09 2018 ऐतिहासिक भाषण की 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर शिकागो में विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया है। इस सम्मेलन में शामिल होने के लिए पहुंचे राष्‍ट्रीय स्‍वयं सेवक संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन में हिंदुओं से एकजुट होने की अपील की। संघ प्रमुख ने मानव जाति के सुधार के लिए एकजुट होकर काम करने के बारे में समुदाय के नेताओं से आग्रह किया। उन्‍होंने दूसरी विश्व हिंदू कांग्रेस में भाग लेने वाले आए 2,500 प्रतिनिधियों की एक सभा को संबोधित किया उन्होंने कहा कि पूरी दुनिया को एक टीम के रूप में लाने के लिए महत्वपूर्ण मूल्यों में से एक है अपने अहंकार को नियंत्रित करना और सर्वसम्मति को स्वीकार करना सीखना होगा।उन्होंने कहा कि यदि शेर अकेला है तो जंगली कुत्ते शेर पर आक्रमण करेंगे और उसे नष्ट कर सकते हैं। हमें यह नहीं भूलना चाहिए। हम दुनिया को बेहतर बनाना चाहते हैं। हमारे पास प्रभुत्व की आकांक्षा नहीं है। हमारा प्रभाव विजय या उपनिवेशीकरण का नतीजा नहीं है।ज्ञात हो कि 11 सितंबर 1893 को स्वामी विवेकानंद ने शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक भाषण दिया था, जिसकी 125वीं वर्षगांठ के अवसर पर विश्व हिंदू सम्मेलन का आयोजन किया गया है। यह सम्मेलन 7-9 सितंबर के बीच रखा गया है। सम्मेलन में भारत के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी अपने विचार रखेंगे।सर संघचालक ने कहा कि आदर्शवाद की भावना अच्छी है। खुद को 'आधुनिक विरोधी' के रूप में वर्णित नहीं किया गया है बल्कि 'समर्थक भविष्य' के रूप में वर्णित है। उन्होंने हिंदू धर्म को 'प्राचीन और उत्‍तर-आधुनिक' के रूप में वर्णित करने की मांग की। उन्‍होंने कहा कि हिंदू समाज केवल तभी समृद्ध होगा जब यह समाज के रूप में कार्य करता है।

उन्होंने बताया कि यह सम्‍मेलन हिंदू सिद्धांत 'सुमंत्राइट सुविकांत' या 'साथ सोचो और बहादुरी से हासिल करो' से प्रेरित है। इस संदर्भ में उन्होंने हिंदू महाकाव्य 'महाभारत' में युद्ध और राजनीति की ओर इशारा किया, बताया कि भगवान कृष्ण और युधिष्ठिर कभी एक-दूसरे से विरोधाभास नहीं करते हैं। उन्‍होंने कहा कि राजनीति ध्यान सत्र की तरह कुछ समय के लिए नहीं की जा सकती है बल्कि इसे पूरे सत्र के लिए करनी चाहिए। उन्‍होंने बताया कि एक साथ काम करने के लिए हमें आम सहमति स्वीकार करनी चाहिए।सम्मेलन में भाग लेने के विचार को लागू करने के लिए एक पद्धति पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि हिंदू समाज में मेधावी व्यक्तियों की सबसे बड़ी संख्या है लेकिन वे कभी साथ नहीं आते हैं। हिंदुओं के साथ मिलकर लाना एक मुश्किल बात है। उन्‍होंने कहा कि मैंने ध्यान दिया है कि हिंदू हजारों सालों से पीड़ित थे क्योंकि वे अपने बुनियादी सिद्धांतों और आध्यात्मिकता का अभ्यास करना भूल गए थे। इसके लिए हमें साथ आना होगा। इसके लिए सभी लोगों को एक छतरी के नीचे पंजीकरण करने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने इस तरह की कार्रवाई की आवश्यकता पर प्रकाश डाला कि कैसे हिंदुओं को एक साथ काम करना चाहिए।
उन्होंने हिंदू धर्म के बारे में कहा कि हमारे यहां एक कीट भी नहीं मारा जाता है बल्कि नियंत्रित किया जाता है। हिंदू किसी का भी विरोध नहीं करता है। यहां तक कि हम कीड़े को भी जीवित रहने देते हैं। कई ऐसे लोग हैं जो हमारा विरोध करते हैं, बिना नुकसान पहुंचाए हमें उन्‍हें नियंत्रित करना होगा।

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