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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के हजारों स्वयंसेवक अपनी जान को हथेली पर रखकर केरल में बाढ़ पीड़ितों की सहायता में दिनरात एक किए हुए हैं। इन स्वयंसेवकों ने दूरदराज के ग्रामीण बाढ़ग्रस्त इलाकों में जाकर सेना के जवानों, अर्धसैनिक बलों और स्थानीय पुलिस का सहयोग करते हुए

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 सेवा के प्रायः सभी कार्यों को सम्भाला है। स्वयंप्रेरणा एवं निःस्वार्थ भाव से सेवा कार्य में जुटे यह स्वयंसेवक किसी प्रमाणपत्र अथवा राजीनतिक वाहवाही से कोसों दूर हैं।
केरल प्रांत में इस समय लगभग 3700 राहत शिविर चल रहे हैं, जिनमें लगभग 7 लाख लोगों को शरण दी गई है। लोगों को बाढ़ से घिरे हुए घरों से निकालकर राहत शिविरों तक पहुंचाने में संघ के स्वयंसेवक पूरी शक्ति के साथ सक्रिय हैं। केन्द्र की सरकार तथा अन्य प्रांतों की सरकारों द्वारा जो राहत सामग्री (भोजन के पैकेट, पानी की बोतलें, दवाइयों के बंडल, वस्त्र एवं टेंट इत्यादि) भेजी जा रही है, उसे शीघ्रता से जरूरतमंदों तक पहुंचाने में संघ के स्वयंसेवक निरंतर परिश्रम कर रहे हैं।
दुर्गम स्थानों तक पहुंचकर पीड़ितों की यथासंभव प्रत्येक प्रकार की मदद करते हुए आ रहे कष्टों का स्वयंसेवक पूरी हिम्मत से साम
ना कर रहे हैं। अपने कर्तव्य को निभाने वाले ये युवा स्वयंसेवक सैनिकों एवं सरकारी कर्मचारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चुप

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चाप काम में लगे हुए हैं।
संघ के स्वयंसेवकों ने उन लोगों को भी सम्भाला और उनकी रक्षा की है जो संघ एवं स्वयंसेवकों के प्रबल विरोधी एवं शत्रु हैं। जिन साम्यवादी तत्वों ने स्वयंसेवकों का कत्लेआम करने की मुहिम चलाई हुई है, उनके परिवारों तक भी पहुंचकर उनकी सहायता कर रहे हैं संघ के स्वयंसेवक। केरल के हिन्दू मुस्लिम ईसाई इत्यादि समुदायों के पीड़ित लोगों की संघ के स्वयंसेवक बिना किसी भेदभाव के सेवा कर रहे हैं।
संघ को जी भर कर गालियां निकालने वाले दलों एवं संस्थाओं से पूछना चाहते हैं कि संकट की इस घड़ी में उनके कितने सदस्य केरल में गए हैं? दिन में कई बार आर.एस.एस को कोसने वाले राहुल गांधी के कितने साथी केरल में सेवा के लिए पहुंचे हैं, जरा बताएं? केरल में देश के कोने-कोने से सहायता पहुंच रही है। केन्द्र सरकार ने भी सहायता देने में कोई कसर नहीं छोड़ी परन्तु केरल में बाढ़ पीड़ित लोगों की सेवा न करके, सेवा के लिए लगे हुए लोगों पर राजनीति करने वाले दल एवं नेता जरा अपनी जान को जोखिम में डालकर वहां जाकर के तो देखें।
उल्लेखनीय है कि संघ के स्वयंसेवक ऐसी किसी भी प्राकृतिक आपत्ति और विदेशी आक्रमणों के समय पीड़ितों और सैनिकों की सहायता के लिए सबसे पहले पहुंच जाते हैं। यही अंतर है देशभक्त स्वयंसेवकों और सत्ता के भूखे संघ विरोधियों में।

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