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श्रावण शुक्ला सप्तमी : श्री तुलसी जयंती

मानव मूल्यों के प्रतीक के परम उपासक -गोस्वामी तुलसीदास

रांची, 26 जुलाई  : सम्पूर्ण भारतवर्ष में गोस्वामी तुलसीदास के स्मरण में श्रावण मास की सप्तमी के दिन तुलसी जयंती मनाई जाती है। गोस्वामी तुलसीदास ने सगुण भक्ति की रामभक्ति धारा को ऐसा प्रवाहित किया कि वह धारा आज भी भक्ति व उत्साह के साथ प्रवाहित हो रही है। उन्होंने रामभक्ति के द्वारा न केवल श्रावण शुक्ला सप्तमी : श्री तुलसी जयंतीअपना ही जीवन कृतार्थ किया वरन सभी को श्रीराम के आदर्शों से बांधने का प्रयास किया। वाल्मीकि जी की रचना ‘रामायण’ को आधार मानकर इन्होंने लोक भाषा में अमर व आदर्श राम कथा की रचना की।
तुलसी लोकदर्शी कवि थे। उनके द्वारा न केवल भक्तों का अपितु लोककल्याण का भी ध्यान रखा गया, उनका हृदय जनमंगल की भवाना से परिपूर्ण था। यही कारण है कि रामचरितमानस जनजन का कण्ठहार बन गया। कवितावली में अपने जीवन की सारी बातें रखने का उनका प्रयास था। उन्होंने सभी जीवो को सियाराममय देखा। उन्होंने कुछ नया नहीं कहा बल्कि संस्कृत में कही बातों को ही कहा है किन्तु नये ढंग से कहा और उसे अभिव्यक्त करने के लिए जनता की भाषा को चुना। तुलसी से यह प्रेरणा ग्रहण की जा सकती है कि मातृभाषा को अपने समाज में पुनर्प्रतिष्ठित करने के लिए अभियान चलाया जाए क्योंकि हिंदी के जातीय तत्वों को पुनर्गठित करने और अपनी सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए दूसरा कोई पथ नहीं है । महात्मा गांधी का आत्म-शुद्धि का उपदेश और तुलसीदास जी का ‘रामचरितमानस’ दोनों एक ही वस्तु हैं। विश्व राजनीति को दिया गया गोस्वामीजी के ‘रामराज्य’ का आदर्श वस्तुत: पूर्ण लोकतंत्र ही है।
भारतीय र्धम, संस्कृति एवं साहित्य के उत्कर्ष में गोस्वामी तुलसीदास का अवदान अनुपम है। जीवन में स्वीकृत मूल्यों और मान्यताओं के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा है।तुलसी लोक संस्कृति के मूर्धन्य कवि हैं। यही उस सन्त की मानवी संस्कृति है। उनके युगबेाधक सन्देश में सम्पूर्ण मानवता की रक्षा का भाव है।
श्रावण शुक्ला सप्तमी : श्री तुलसी जयंतीतुलसी वर्तमान सनातन संस्कृति के प्रणेता और मानवता के अमर सन्देश प्रदाता हैं। उनकी दृष्टि भक्ति, आचार व्यवहार, सामाजिक मर्यादा, नैतिक मूल्य और लोकहित के लिए उपयोगी तत्वों पर टिकी रही। तुलसी महान लोकनायक और लोक क्रांतिदर्शी कवि थे। सत्य की स्थापना और असत्य का नाश तुलसी के लोकाभिराम की जीवन गाथा है। रामकथा के माध्यम से तुलसी ने हमारे समक्ष मानवता का ऐसा सन्देश प्रस्तुत किया है जिसको अपनाकर हम अपनी संस्कृति की, अपनी वैचारिक विरासत की तथा सम्पूर्ण मानवता की रक्षा कर सकते हैं। तुलसीदास का मत है कि इंसान का जैसा संग साथ होगा उसका आचरण व्यवहार तथा व्यक्तित्व भी वैसा ही होगा क्योंकि संगत का असर देर सवेर अप्रत्यक्ष-प्रत्यक्ष, चेतन व अवचेतन मन एवं जीवन पर अवश्य पड़ता है। इसलिए हमें सोच-समझकर अपने मित्र बनाने चाहिए। सत्संग की महिमा अगोचर नहीं है अर्थात्‌ यह सर्वविदित है कि सत्संग के प्रभाव से कौआ कोयल बन जाता है तथा बगुला हंस। सत्संग का प्रभाव व्यापक है, इसकी महिमा किसी से छिपी नहीं है। तुलसीदास का कथन है कि सत्संग संतों का संग किए बिना ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती और सत्संग तभी मिलता है जब ईश्वर की कृपा होती है। यह तो आनंद व कल्याण का मुख्य हेतु है। साधन तो मात्र पुष्प की भांति है। संसार रूपी वृक्ष में यदि फल हैं तो वह सत्संग है। अन्य सभी साधन पुष्प की भांति निरर्थक हैं। फल से ही उदर पूर्ति संभव है न कि पुष्प से। अनेकों ग्रंथों के रचयिता भगवान् श्री राम के परम भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी भले ही तलवार लेकर लड़ने वाले योद्धा न हों, लेकिन उन्होंने अपनी भक्ति और लेखनी के बल पर इस्लामी आतंक को परास्त करके हिंदू धर्म की ध्वजा फहराए रखने में अपूर्व योगदान दिया था।
तुलसीदास का साहित्य हमारी विरासत हैं, लोगों के कंठ का हार हैं रामचरितमानस में कलयुग वर्णन के बहाने तत्कालीन सामाजिक-राजनैतिक परिस्थिति का चित्रण किया है तो रामराज्य वर्णन के बहाने आदर्श राज्य व शासक की विशेषता बताते हुए कहा गया है कि शासक को मुख के समान होना चाहिये । आज जब लोकतंत्र में संकट ही संकट है , सर्वत्र भ्रष्टाचार और भाई भतीजावाद का बोलबाला है। जब हमारे राजनेता ही अन्याय से शासन प्रणाली को आगे बढ़ा रहे है तब तुलसी के रामराज्य की कल्पना प्रासंगिक हो जाती है। हम रामचरितमानस से प्रेरणा लेकर आदर्श राज्य व राष्ट्र की स्थापना कर सकते हैं। आज जातिवाद, आरक्षण को बढ़ावा व्यापक स्तर पर बढ़ावा मिल रहा है जिसे रामचरितमानस में दूर करने का प्रयास किया गया है। मानव-मानव एक है , सिद्वान्त की प्रतिष्ठा की स्थापना के लिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम केवट को हृदय से लगाते है तो शबरी के झूठे बेर भी खाते हैं। कर प्रणाली के बारे में राजा को कर सूर्य के समान लेना जिससें किसी को आपत्ती न हो और मेघ के सामान लौटाना भी चाहिए। राष्ट्रीय योजनाओं को राष्ट्र की कल्याण की भावना से लागू किया जाना चाहिए जिसका लाभ सबको मिल सके। यह संदेष हमें रामचरितमानस देता है। रामचरितमानस के सभी पात्र आदर्श हैं जिनसे हम कुछ न कुछ अवश्य सीखते हैं। सत्यनिष्ठ राजा दशरथ से वचन पालन, श्रीराम से उत्तम मानवीय मर्यादा, देवी सीता और उर्मिला से कर्तव्यनिष्ठा, सुग्रीव व हनुमान से मित्रता व सेवा का भाव, भरत-लक्ष्मण और शत्रुघ्न से भाई के प्रति निश्चल प्रेम का संदेश प्राप्त होता है।
तुलसीदासजी के अनुसार मुसीबत आने पर मनुष्य के ये सात गुण- ज्ञान, विनम्रता, विवेक, साहस, अच्छे कर्म, सच्चाई और भगवान में आस्था ही काम आते हैं।
इस कलयुग में हम सभी राम के उपासक बड़े भाग्यशाली हैं कि 500 वर्षों के लंबे संघर्षों के बाद अयोध्या में पुनः 5 अगस्त को विश्व में मानवीय आदर्श स्थापित करने वाले भगवान राम की भव्य व विश्व ऐतिहासिक मंदिर निर्माण की प्रक्रिया प्रारंभ हो रही है। सनातन धर्म में आस्था रखने वाली समस्त हिंदुओं के लिए भव्य राम मंदिर का निर्माण रामराज्य की संकल्पना को साकार करने की दिशा में एक आवश्यक व उपयोगी कदम है। इस वर्ष का तुलसी जयंती अपने आप में अति विशेष व काफी महत्वपूर्ण है। अतः तुलसी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि का अब वह समय आ गया है जब तुलसी के बताए मार्ग पर चलकर भारत की विशिष्ट सांस्कृतिक वैविध्य विरासत को जीवंत करते हुए मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम द्वारा स्थापित आदर्श व्यवस्था रामराज्य के सपनों को साकार करने में सभी देशवासी एकजुट होकर आपसी एकता अखंडता व राष्ट्र निष्ठा का भाव प्रकट करें तथा विश्व के समक्ष एक बार फिर शांतिप्रिय व विश्व कल्याण के मार्ग पर राष्ट्र को अग्रसारित करें।

भारद्वाज शुक्ला


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