: vskjharkhand@gmail.com 9431162589 📠

शहीद पांडेय गणपत राय की जयंती पर विशेष : झारखंडी मानस ने कभी भी गुलामी को स्वीकार नहीं किया

रांची, 17 जनवरी  : ‘शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले, वतन पर मरनेवालों का यही बाकी निशा होगा’। यह शेर सिर्फ लफ्जों की खूबसूरती के कारण कभी-कभी चर्चा में रहता है। उसी प्रकार हमारे झारखंड में हर वर्ष राष्ट्रीय पर्व के अवसर पर शहीदों के सम्मान में ढेर-सारे आश्वासन दिये जाते हैं। लेकिन ये आश्वासन सिर्फ लोकतंत्र की लहलहाती फसलों को काटने के उद्देश्य से ही दिये जाते हैं।

VSK 17 01 20 3कवि प्रदीप का लिखा गीत ‘हम लाये हैं तूफान से कश्ती निकाल के, इस देश को रखना मेरे बच्चों संभाल के’। इस कश्ती और आजादी के लिए बलिदानों और अनुष्ठानों में झारखंडी माटी के सपूत आहूति देने में सदैव आगे रहे। देश के लिए उत्सर्ग करनेवाले अनेकानेक दीप स्तंभ हैं, जिन्होंने 1857 में आजादी के जुनून के बीच एक हीरा शहीद पांडेय गणपत राय तूफान से कश्ती को निकालने के उपक्रम में शामिल थे।

‘वक्त जब गुलशन पे पड़ा तो खून हमने दिया जब बहार आयी तो कहते हैं तेरा काम नहीं’। लेकिन विडंबना है कि आज हम ही इन शहीदों की शहादत को नहीं मानते। सैकड़ों गुमनाम शहीदों को छोड़ दें तो भी सरकारी आंकड़े बताते हैं कि  झारखंड के शहीदों की स्थिति यही है।

लोकप्रिय संगीत ‘जरा याद उन्हें भी कर लो’ इनके लिए कोई मायने नहीं रखता है। झारखंड की मिट्टी शहीदों के खून से लथपथ है। काश ! आज हमारी झारखंड सरकार के पास ऐसी कोई योजना होती कि इनकी याद में कुछ ऐसा किया जाये जो यादगार बने।

ब्रिटिश हुकूमत से लोहा लेनेवाले भारत के अनेक शहीदों में छोटानागपुर वर्तमान झारखंड राज्य में एक नाम है ‘अमर शहीद पांडेय गणपत राय’ जी का। मातृभूमि, भारत मां को अंग्रेजों से मुक्त करने के प्रयास और भोली भाली मासूम जनता को अंग्रेजों के कहर से बचाने के जुर्म में वर्तमान शहीद स्थल (जिला स्कूल के निकट) एक कदम के पेड़ पर रांची में 21 अप्रैल सन् 1858 को फांसी पर अंग्रेजी हुकूमत ने चढ़ाया।

पांडेय गणपत राय का जन्म सन 1809 ई में लोहरदगा जिले के भौरो गांव में एक जमींदार परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम राम किसुन राय और माता का नाम सुमित्रा देवी था। बचपन में उन्होंने अंग्रेजों व जमींदारों के आपसी संबंधों को देखा था प्रशंसकों द्वारा आम जनता  की नित्य दयनीय होती स्थिति को भी बहुत करीब से देखा था।

छोटानागपुर राजा के दीवान रहते हुए उन्होंने अंग्रेजों की छल-कपट, अत्याचार , दमनात्मक रवैया, मासूमों की हत्याएं सब कुछ अपनी आंखों से देखी थी। उसी दर्द ने उनके अंदर एक क्रांतिकारी को पैदा किया था। फिर वो दिन भी आया जिसे भुलाया नहीं जा सकता। 21 अप्रैल 1858, छोटानागपुर के इतिहास का काला दिन था।

इनाम की लालच में भारत के कुछ लोग ऐसे थे जिन्होंने भारत माता के साथ गद्दारी कर इस संग्राम को दबाने में अंग्रेजों की मदद की। 21 अप्रैल 1858 को उन्हें रांची लाया गया। इसके बाद रांची के कमिश्नर डाल्टन ने उन्हें मौत की सजा सुना दी।

डॉ वंदना राय

(लेखिका शहीद पांडेय गणपत राय की प्रपौत्री हैं)


Kindly visit for latest news 
: vskjharkhand@gmail.com 9431162589 📠 0651-2480502