: vskjharkhand@gmail.com 9431162589 📠

सीएए - बहकावे में विरोध : संजय कुमार आज़ाद

रांची, 20 जनवरी  : भारतीय संसद से पास और भारत के राष्ट्रपति द्वारा हस्तक्षरित होने के बाद नागरिकता संशोधन कानून-2019 इस वर्ष 10 जनवरी को राजकीय गजट में प्रकाशित होने से यह पूरे देश  मे लागू हो गया है, लेकिन कई गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकार इस नए कानून को लागू करने से इनकार कर रही हैं। जबकि यह देश का कानून है और कोई राज्य इसे लागू करने से नहीं रोक सकता है। समर्थन और विरोध-प्रदर्शनों के बीच कुछ गैर भाजपा शासित राज्यों के विधानसभा में नागरिकता संशोधन कानून (CAA) के खिलाफ तो कोई समर्थन में प्रस्ताव भी पारित किया है। अब केंद्र सरकार के इस संशोधित कानून को चुनौती देते हुए इसके विरोधी उच्चतम न्यायालय का भी रुख किया है।

कांग्रेस शासित राज्यों में सीएए लागू न करने की कवायद के बीच पार्टी के अंदर ही अलग-अलग सुर नजर आ रहे हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री श्री कपिल सिब्बल के बाद कांग्रेस नेता श्री सलमान खुर्शीद ने भी कहा है कि -"राज्यों के लिए संसद से पारित कानून को लागू करने से मना करना कठिन है"। जबकि कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता पवन खेड़ा ने 30 दिसंबर 19 को कहा कि -"सत्ता में आने पर उनकी पार्टी नागरिकता कानून में हाल में किए गए संशोधन में बदलाव करेगी और कानून के लाभार्थियों में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के मुस्लिम शरणार्थियों को भी शामिल करेगी,"। यानी विपक्ष भी मानता है कि केंद्र सरकार का वर्तमान कानून पूरे देश मे सामान्य रूप से लागू है और इसके प्रति विरोध दर्ज कराना लोकतांत्रिक अधिकार तो है किंतु राज्य इसे लागू करने से मना तबतक नही कर सकती जबतक उच्चतम न्यायालय इसे असंवैधानिक नही घोषित करती है।

केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती सीतारमण का मानना है कि -"विधानसभा में सीएए के खिलाफ प्रस्ताव पारित करना राजनीतिक बयानबाजी जैसा है। हम उसे समझ सकते हैं। लेकिन यह कहना कि वे इसे लागू नहीं करेंगे, कानून के खिलाफ है। ऐसा कहना असंवैधानिक है"। जिन राज्यों के विधानसभा में इसके विपरीत प्रस्ताव पारित किया औऱ अदालत में सीएए को चुनौती दी है, वह तबतक इसे लटकाए रख सकते कि मामला अदालत में लंबित रहने तक वह कानून को अपने प्रदेशों में लागू नही करेंगे। इसके लिए विपक्ष सहित गैर भाजपा शासित राज्य देश के उच्चतम न्यायालय की शरण मे है।

उच्चतम न्यायालय के अधिकार क्षेत्र में सामान्यत: तीन तरह के मामले आते हैं : १. वास्तविक  २. अपीलीय और ३. परामर्श शामिल हैं। इनमें वास्तविक अधिकार क्षेत्र में उच्चतम न्यायालय के पास निर्णय देने की विशेष शक्तियां होती हैं। दूसरे अपीलीय के तहत कानूनी प्रावधानों की व्यख्या कर केंद्र या राज्य के अपील पर निर्णय देता है और इसी के तहत कुछ सरकार या संगठन यहां अपील करते है। 

अनुच्छेद १३१ के तहत अपील तभी दाखिल किया जा सकता है जब वह केंद्र और राज्य सरकार के बीच विवाद हो। साथ ही इसमें कानून और तथ्यों को लेकर सवाल होना चाहिए। जिस पर राज्य या केंद्र के कानूनी अधिकार का अस्तित्व निर्भर करता है। १९७८ में कर्नाटक राज्य बनाम भारत संघ के बीच विवाद को लेकर न्यायमूर्ति पीएन भगवती ने कहा था कि -"अनुच्छेद १३१ के तहत सुप्रीम कोर्ट को एक मुकदमे को स्वीकार करने के लिए, राज्य को यह दिखाने की आवश्यकता नहीं है कि उसके कानूनी अधिकार का उल्लंघन किया गया है, लेकिन विवाद में कानूनी सवाल शामिल होना ही चाहिए"।

भारत की संविधान तीन प्रकार के अधिकारों को रक्षित करती है। १.केंद्रीय सूचि  २.राज्य सूचि और ३.समवर्ती सूची। केंद्र ने नागरिकता कानून में संशोधन सातवीं अनुसूची की पहली सूची के तहत किया है। इसके तहत नागरिकता विषय पर केंद्र को ही कानून बनाने का अधिकार है। जिसे कोई राज्य नकार नही सकता। अगर समवर्ती सूची के किसी विषय पर केंद्र की सरकार इस कानून को बनाता तो टकराव हो सकता था, क्योंकि इसमें राज्यों को भी कानून बनाने का अधिकार है। केंद्र के साथ कानूनी विवाद की स्थिति में कोई भी राज्य अनुच्छेद १३१ के तहत न्यायालय की शरण में जा सकता है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद १३१ राज्य और केंद्र सरकार के बीच उतपन्न विवादों पर उच्चतम न्यायालय को फैसला देने का विशेष अधिकार देता है। इसके साथ ही अगर राज्य से राज्य का भी कोई विवाद हो तो उस स्थिति में भी यह अनुच्छेद उच्चतम न्यायालयको निर्णय का विशेष अधिकार देता है।

गैर भाजपा शासित राज्यों की सरकारों का कहना है कि यह कानून संविधान के कई अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है, जिसमें समानता का अधिकार भी शामिल है, और कहा कि-"यह कानून संविधान में निहित धर्मनिरपेक्षता के बुनियादी सिद्धांतों के खिलाफ है"। यह कानून भारतीय संविधान की अनुच्छेद १४,जिसके तहत यह कहा गया है कि राज्य, भारत के राज्य क्षेत्र में किसी व्यक्ति को कानून के समक्ष समता से या कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं करेगा.दूसरा अनुच्छेद २१ जो निर्देशित करता है कि किसी व्यक्ति को उसके प्राण या दैहिक स्वतंत्रता से विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जाएगा, अन्यथा नहीं। वही अनुच्छेद २५ नागरिको को अंत:करण की और धर्म को अबाध रूप से मानने, आचरण और प्रचार करने की स्वतंत्रता, कोई भी व्यक्ति किसी भी धर्म को मान सकता है और उसका प्रचार-प्रसार कर सकता है की अनुमति देता है। ऐसे में वर्तमान कानून उपरोक्त नागरिक अधिकारों पर आक्षेप करता है। ये हवाला देते हुए कुछ राज्य सरकार ने संविधान के अनुच्छेद १३१ का इस्तेमाल करते हुए उच्चतम न्यायालय का रुख किया है और न्यायालय से नागरिकता कानून को मूल अधिकारों का उल्लंघन करने वाला घोषित करने की मांग करते हुए इसपर रोक लगाने की मांग की है स्मरण रहे कि वर्ष २०११ में मध्य प्रदेश बनाम भारत सरकार से जुड़े एक ऐसे ही केस को उच्चतम न्यायालय के दो जजों की बेंच ने 'नॉट मेंटेनेबल' माना था यानी केस खारिज हो गया था।

इस कानून के विरोध करनेवाले समूहों ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दाख़िल कर कहा है कि -"अगर यह नया कानून अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में  धार्मिक तौर पर उत्पीड़न झेल रहे लोगों के लिए है तो फिर इन देशों के शिया और अहमदिया (दोनो मुस्लिम) को भी हिंदू, सिख, बुद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय की तरह नागरिकता संशोधन कानून में शामिल किया जाना चाहिए था। इसके अलावा श्रीलंका के तमिल, नेपाल के मधेसी और अफगानिस्तान के हजारा समूह का भी जिक्र किया गया है की इन देशों के इन नागरिको के लिए भी प्रवधान हो"। कुछ राज्य सरकारों ने तो यहां तक कहा है कि-" संविधान के अनुच्छेद २५६ के अनुसार,किसी राज्य को नागरिकता संशोधन कानून का पालन करने के लिए मजबूर किया जाएगा तो यह उसके मूलभूत रूप से मनमाना, अनुचित, तर्कहीन और मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन है। लिहाजा, यह एक विवाद है जो राज्य और केंद्र सरकार के बीच है ऐसे में संविधान के अनुच्छेद १३१ का इस्तेमाल करते हुए यह याचिका उच्चतम न्यायालय के पास दायर की जा रही है"।

नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ पहले ही उच्चतम न्यायालय में ६० से अधिक याचिकाएं दायर की गई हैं और इस मामले की सुनवाई २२जनवरी२० को होनी है। झूठ और राजनीतिक रंजिश के सहारे इस कानून को ढाल बनाकर विपक्ष जिस रास्ते को चुना वह आत्मघाती कदम है। यह कानून किसी भी प्रकार से भारत के किसी भी नागरिक को प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रभावित नही करती है। किसी भी विदेशी को भारत की नागरिकता प्राप्त करने का जो संवैधानिक प्रावधान है उसे यह कानून अतिक्रमित नही करती है। फिर विरोध क्यों?

यह लोकतंत्र के साथ विपक्ष का घिनौना असंवैधानिक खेल है इसकी आग में ख़िलाफ़त-२ की जो बू आ रही वह चिंताजनक है। इसके विरोध प्रदर्शन में हिन्दू मानविन्दुओ का मर्दन क्यों हो रहा। क्या संसद में पारित यह मानवीय कानून को किसी हिन्दू समूह ने पारित किया है। तो फिर इसके विरोध करनेवालों का यह पाश्विक तरीका हिंसा,सरकारी सम्पतियों को जलाना,लूटना,हिन्दू मान विन्दुओं को कलंकित करना,लोकतंत्र के शिरस्थ पदों पर अभद्र भाषा का प्रयोग करना,जैसे घृणित कार्यों को सही कैसे ठहराया जा सकता।

भारतीय संविधान केंद्र के पास यह सुनिश्चित करने के लिए व्यापक शक्तियां भी दी  हैं, जिससे कानूनों को राज्यों में लागू करवाया जा सके। भारत की संसद द्वारा पारित कानून को लागू कराने के लिए केंद्र, राज्य सरकार को निर्देश दे सकता है। यदि राज्य सरकार इन निर्देशों का पालन नहीं करती है तो केंद्र सरकार अदालत को कानून के अनुपालन के लिए बाध्य करने के लिए राज्यों के खिलाफ एक स्थायी निषेधाज्ञा भी मांग सकती है। अदालत के आदेशों का पालन न करने पर अदालत की अवमानना भी हो सकती है, और अदालत आमतौर पर कानूनों को लागू करने के लिए जिम्मेदार राज्यों के मुख्य सचिवों को दोषी मानती है। ऐसे में इसका विरोध का औचित्य ना कानूनी,न व्यवहारिक और न ही समाज हित मे है।

देश के गृह मंत्री श्री अमित शाह ने कहा है,-"नए कानून का मतलब यह नहीं है कि सभी शरणार्थियों या अवैध प्रवासियों को अपने आप ही भारतीय नागरिकता मिल जाएगी। उन्हें भारत की नागरिकता पाने के लिए आवेदन करना होगा जिसे सक्षम प्राधिकरण देखेगा। संबंधित आवेदक को जरूरी मानदंड पूरे होने के बाद ही भारतीय नागरिकता दी जाएगी"। देश के प्रधानमंत्री भी इस संदर्भ में व्यापक सन्देश दिए फिर भी देश में अराजक माहौल पैदा करने और अपनी राजनीतिक रोटी सेकने के लिए विपक्ष कुछ गिरोहों को आगे कर जो कर रहा उसे कभी भी न्यायोचित नही ठहराया जा सकता है। महिलाओं, छोटे छोटे बच्चों को लेकर, उनको आगे बढ़ाकर, उनको हथियार बनाकर, इस कानून के विरोध का यह तरीका भारतीय परम्पराओं के विपरीत है। बहकावे की भीड़ से कभी भी किसी भी समाज का भला नही होता है। आज जब उपरोक्त तीन इस्लामी देशों के गैर मुस्लिम आवादी के प्रति किया जा रहा  उस देश के शासन का हिंसक व्यवहार पर विश्व का ध्यान आकृष्ट कर उनके हिंसक चरित्र को उजागर करने का सुनहला अवसर था ऐसे में भारत मे ही कुछ क्रिप्टों भारतीय उन इस्लामी देशों के बचाव में खड़े होकर देश के साथ विश्वासघात कर रहे है। आज के इस कानून के विरोध का स्वरूप संस्कृत की यह श्लोक को चरितार्थ करती है:

"मूर्खस्य पञ्च चिन्हानि गर्वो दुर्वचनं तथा  । क्रोधश्च दृढवादश्च परवाक्येष्वनादरः॥"

अर्थात,मूर्खों के पाँच लक्षण हैं - गर्व, अपशब्द, क्रोध, हठ और दूसरों की बातों का अनादर।


Kindly visit for latest news 
: vskjharkhand@gmail.com 9431162589 📠 0651-2480502