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हिन्दू समाज का शिरोमणि : सन्त रविदास

रांची, 08 फरवरी : भारत सदा सिद्ध-पुरुषों की लीलास्थली रही है। अगर हम अपने हिन्दू साहित्य का अवलोकन करें तो उन सन्त शिरोमणि के कृतित्व से समाज सदा आगे बढ़ उनको आत्मसात करता रहा, यह सर्वविदित है। समय-समय पर जब भी समाज दिग्भ्रमित हुआ ऐसे महापुरुषों ने आगे बढ़कर रास्ता दिखा हिंदुत्व को संरक्षित किया है। अपने संस्कृति ने सदा कहा है :

 ब्राह्मण मत पूजिए जो होवे गुणहीन । पूजिए चरण चंडाल के जो होने गुण प्रवीण ।। 

azad copy(अर्थात,किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए नहीं पूजना चाहिए क्योंकि वह किसी ऊंचे कुल में जन्मा है। यदि उस व्यक्ति में योग्य गुण नहीं हैं तो उसे नहीं पूजना चाहिए, उसकी जगह अगर कोई व्यक्ति गुणवान है तो उसका सम्मान करना चाहिए, भले ही वह जन्म से तथाकथित नीची जाति से हो।) हिन्दू संस्कृति ने हमेशा कर्म की प्रधानता दी है। किंतु बीच के कालखण्ड में अपना समाज आत्मविस्मृत हो कर्म के स्थान को गौण कर जाति को प्राथमिकता दिया। सांस्कृतिक मनोविज्ञान मानता है कि मनुष्य की भावनाएं औऱ आचरण संस्कृति-सापेक्ष होने के कारण उनके बारे में कोई सार्वभौमिक सिद्धांत नहीं बनाए जा सकते। यही सिद्धांत कर्म को जाति की ओर परिणत करने में सहायक बना। आज जिस तरह से सेमेटिक वर्ग भारत की राजनीतिक परिदृश्य को कलंकित करने का प्रयास कर रही वह शोचनीय है,क्योंकि भारत में कुछ राष्ट्रविरोधी ताकतों के इशारे पर असामाजिक तत्वों द्वारा विशेषकर दलित समाज को उकसाया जा रहा है, कि तुम हिन्दू नही हो? हिन्दू तुम्हारा शोषक है।

ऐसे में आज जिस महान सन्त ने हिन्दू को एक रखने का श्रेष्ठतम कार्य किया था वो थे भक्त शिरोमणि सन्त रविदास जी। हिन्दू सन्त शिरोमणि हमारे पूज्य महान संत रविदास (रैदास) जी का जन्म वि.सं. १४३३ (१३७६ ई.) में माघ की पूर्णिमा को हुआ था । इस वर्ष पूज्य रविदास जी की जयंती ०९ फरवरी २०२० में मनाई जा रही है, जो उनका ६४३ वा जन्मजयंती वर्ष है।संतश्रेष्ठ गुरू रविदास जी का जन्म काशी में चर्मकार (चमार) कुल में हुआ था। उनके पिता का नाम श्री संतो़ख दास (रग्घु) और माता का नाम व कलसा देवी था। जिस दिन इस महामानव का अवतीर्ण इस विराट हिन्दू संस्कृति के उत्थान के लिए हुआ वह दिन रविवार था इस कारण उन्हें रविदास विशेषण से भी सुशोभित किया जाता है। भारत की विभिन्न प्रांतीय भाषाओं में उन्हें रोईदास, रैदास व रहदास आदि विशेषणों से भी अलंकृत किया जाता है।

अपने बाल्यकाल से ही अद्भुत शक्तियों से मण्डित पूज्य संत सदा समाज के लोककल्याण के लिए कार्य करते रहे। श्री रविदास जी बचपन में अपने गुरु पंडित शारदानन्द की पाठशाला में शिक्षा ग्रहण हेतु प्रवेश लिया। किन्तु इनके प्रवेश के उपरांत कुछ समय बाद तथाकथित ऊँची जाति वालों ने उनका विरोध भी किया किन्तु पंडित शारदानन्दजी ने रविदास जी की प्रतिभा को जान लिया था, वे समाज की उंच नीच बातों को नहीं मानते थे, उनका मानना था कि रविदास भगवान द्वारा भेजा हुआ एक बच्चा है औऱ पूरे स्नेह से उन्होंने इनके शिक्षा को आगे बढ़ाया। यहां तक कि उन्होंने अपने बेटे की शिक्षा भी रविदासजी के साथ शुरू करवा कर अपनी गुरु परम्परा को सम्मानित कर समाज को सन्देश देने का प्रयास किया।

पूज्य सन्त रविदास जी और इनके गुरुजी के पुत्र वे दोनों अच्छे मित्र बन गए थे. एक ऐसी घटना का भी जिक्र मिलता है कि एक बार वे दोनों दोस्त लूका-छिपीका खेल रहे थे,खेल खेलने में दोनों इतने मशगूल हो गए कि पता ही नही चला कब रात हो गयी जब ध्यान हुआ तो उन दोनों ने अगले दिन खेलने की बात कही और अपने अपने घर के गए। दुसरे दिन सुबह रविदास जी खेलने पहुँचते है, लेकिन वो मित्र नहीं आता है।तब रविदास अपने प्रिय मित्र के घर जाते है, वहां जाकर पता चलता है कि रात को उसके मित्र की मृत्यु हो गई है। ये सुन रविदास सुन्न पड़ जाते है, तब उनके गुरु शारदानन्द जी उन्हें मृत मित्र के पास ले जाते है।रविदास जी को बचपन से ही अलौकिक शक्तियां मिली हुई थी, वे अपने मित्र से कहते है कि ये सोने का समय नहीं है, उठो और मेरे साथ खेलो। ये सुनते ही उनका मृत दोस्त खड़ा हो जाता है।ये देख वहां मौजूद हर कोई अचंभित हो जाते है।

उस समय यहां तक कि रविदास जी को अपनी जाति वाले भी आगे बढ़ने से रोकते थे।कुछ लोग रविदास जी को ब्रह्मण की तरह तिलक लगाने, कपड़े एवं जनेऊ पहनने से रोकते थे।ब्राह्मण लोग भी उनकी इस गतिविधियों के सख्त खिलाफ थे।गुरु रविदास जी इन सभी बात का खंडन करते थे, और कहते थे सभी इन्सान को धरती पर समान अधिकार है, वो अपनी मर्जी जो चाहे कर सकता है।उन्होंने हर वो चीज जो नीची जाति के लिए मना थी, करना शुरू कर दिया, जैसे जनेऊ, धोती पहनना, तिलक लगाना आदि।उन्होंने हिंदुत्व की महान परम्पराओं को पुनर्जीवित क़ियाम

आज भी सेमेटिक वर्ग के झांसे में आकर कुछ लोग यह प्रोपेगण्डा फैला रहे कि हमारे संत रविदास जी वो भी हिन्दू नही थे, मुसलमान और दलित भाई-भाई है और हिन्दू हमारे दुश्मन हैं, इस तरीके से भारत को टुकड़े-टुकड़े करने का भयंकर षड्यंत्र वैश्विक इशारों पर भी चल रहा है ।आज जो दलितों को हिन्दू समाज से अलग मानने का प्रयास कर रहे हैं, वो बड़े भयंकर पाप के भागीदार हो रहे हैं, उनको महान हिन्दू संत रविदास का इतिहास ठीक से पढ़ना चाहिए।दलित समाज को उनका मूल धर्म हिन्दू धर्म से दूर कराना सेमेटिक पन्थो की सोची समझी साजिश है जिस साजिश के शिकार कुछ कुंठित बुद्धिजीवी हो रहे है।सन्त शिरोमणि श्री रविदास जी का मानना था : 

"रविदास जन्म के कारनै, होत न कोउ नीच । नकर कूं नीच करि डारी है, ओछे करम की कीच"॥

(अर्थात,कोई भी व्यक्ति किसी जाति में जन्म के कारण नीचा या छोटा नहीं होता है, आदमी अपने कर्मों के कारण नीचा होता है।)
जब पूज्य श्री रविदास जी के समक्ष इस्लामी सदना पीर ने शास्त्रार्थ करके हिंदू धर्म की निंदा करने का कुत्सित प्रयास किया और मुसलमान मत की प्रशंसा की तो संत रविदासने उसकी बातों को ध्यान से सुना और फिर जो उत्तर दिया और उन्होनें इस्लाम मत के दोष बताते हुआ कहा कि-

 वेद धरम है पूरन धरमा, वेद अतिरिक्त और सब भरमा।

 वेद वाक्य,उत्तम धरम, निर्मल वाका ग्यान।

यह सच्चा मत छोड़कर, मैँ क्योँ पढूँ कुरान,

स्त्रुति-सास्त्र-स्मृति गाई, प्राण जाय पर धरम न जाई।।

जय भीम और जय मीम के नारे लगाने वाले जमातों को पूज्य संत शिरोमणि जी के इस रहस्य को आत्मसात कर एकबार आत्मचिंतन करे कि किस तरह हम सेमेटिक छलावे के शिकार बन अपने पूज्य सन्तों के अमृत सीख को पददलित कर रहे है।जब हमसब तरह से आध्यात्मिक सुख से परिपूर्ण है फिर दूसरे के यहां क्यों जाना?उस समय भी पूज्य रविदास जी की शिकायत तत्कालीन राजा के पास गई वहां भी उन्होंने दृढ़ता से कहा कि-"सभी मानव  के पास एक ही लाल खून है, दिल है, तो उन्हें बाकियों की तरह समान अधिकार भी है।इसपर वितण्डा क्यों?
पूज्य संत रविदास ने अपने जीवन के अंतिम वर्षों में सम्पूर्ण भारत-भ्रमण करके संकुचित औऱ कुंठित समाज को उत्थान की नयी दिशा दी। संत रविदास साम्प्रदायिकता पर भी चोट करते हैं। उनका मत है कि सारा मानव वंश एक ही प्राण तत्व से जीवंत है। वे सामाजिक-समरसता के महान संत थे। वे समाजी बुराई मदिरापान तथा नशे आदि के भी घोर विरोधी थेे तथा इस पर उपदेश भी दिये हैं।ईश्वर की आस्था में उनका गहरा विश्वास था तभी तो वे कहते हैं-

"हरि-सा हीरा छांड कै, करै आन की आस,ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास॥

(यानी हीरे से बहुमूल्य हैं हरि. यानी जो लोग ईश्वर को छोड़कर अन्य चीजों की आशा करते हैं उन्हें नर्क जाना ही पड़ता है)
सन्त शिरोमणि रविदास जी का उपदेश का ही कमाल था कि  चित्तौड़ के हिन्दू राजा राणा सांगा की पत्नी झाली रानी उनकी शिष्या बनीं वहीं चित्तौड़ में संत रविदास की छतरी बनी हुई है। मान्यता है कि वे वहीं से स्वर्गारोहण कर गये। समाज में सभी स्तर पर उन्हें सम्मान मिला। वे निर्गुण के महान संत कबीर के गुरूभाई तथा मीरावाई के भी गुरू थे।पूज्य संत श्री रविदास जी का वचन हिन्दुधर्म रक्षार्थ पूज्य दशमेश गुरुओं द्वारा संरक्षित खालसा पंथ और पूज्य श्रीगुरुग्रंथ साहिब में उनके पदों का समायोजन कर उनके प्रति आदर समर्पित किया गया है। यही हिंदुत्व की विलक्षणता है।

भारत की बहुलता वादी दृष्टि तभी तक विश्व को पल्लवित करेगी जबतक भारत हिन्दू बाहुल्य है।पूज्य संत रविदास जी इसी हिन्दू विचार को मानवता की प्राणवायु मानते थे।हिन्दू समाज सदा समय के अनुरूप अपने गलतियो से सीखता रहा है।हिन्दू सदा रचनात्मक दृष्टि से विश्व का मार्ग दर्शन करते अहम ब्रह्मास्मि का सिद्ध मन्त्र दिया है।सैकड़ों वर्षों की अंग्रेजी गुलामी और उसके पूर्व की इस्लामी गुलामी हिन्दू संस्कार को,इसकी सभ्यता संस्कृति को विकृत करने का असफल प्रयास करता आया ताकि इन सेमेटिक मतों की भीड़ को वृहद किया जा सके किन्तु समय समय पर पूज्य रविदास जी जैसे सन्तों का आगमन और उनका समाज पर प्रभाव इन सेमेटिक शक्तियों को रोकने का सफल प्रयास भी किया है।

आज़ादी के बाद मार्क्स-मैकाले नियंत्रित इतिहासकारों ने हिन्दुओ को बांटने हेतु जो इतिहास लिखा वह इतिहास को शर्मसार करती है।जैसे जैसे शोध सामने आ रहे इन विकृत मानसिकता से इतिहास लिखने बाले इतिहासकरों की इतिहास कलंक कथा में बदलती जा रही है।हिन्दू परम्परा के सशक्त अंग को इस समाज से काटने में लगा यह सेमेटिक गिरोह आज औऱ भी उग्र होकर सच्चाई को छिपाने की कोशिश कर रहा है।हर वह साहित्य-सोच जो हिन्दुओ को एक करने का प्रयास करता उसे संघी विचारसमुहो की उपज मान उनपर उंगली उठाने का कुत्सित प्रयास हो रहा है।आज पूज्य रविदास जी के प्रवचन उनका जीवन हर उस हिन्दू को पढ़ना चाहिए जिन्हें ये सेमेटिक वर्ग सबों से दूर रखने का प्रयास कर रही है।आज के सामाजिक वातावरण में समरसता का संदेश देने के लिये संत रविदास का जीवन अद्वितीय ओर अद्भुत एवम आज के युवाओं के लिए भी प्रेरक हैं।

संजय कुमार आज़ाद


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