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- Written by S.K. Azad , Edited by Bharat Bhushan
- Category: RSS Media Cell , Jharkhand Wing
अंग्रेज़ी अत्याचार से त्रस्त होकर तिलका मांझी ने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ उठा लिए थे हथियार
रांची, 11 फरवरी : जब-जब भारत भूमि को लोगों ने गुलाम बनाने की कोशिश की है, तब-तब वीर सपूतों ने आगे आकर मातृभूमि की रक्षा हेतु अपने प्राणों की आहुति दी है । संथाल परिवार देशभक्तों से भरी पड़ी है उनमें से एक है तिलका मांझी ।
तिलका मांझी का जन्म 11 फरवरी, 1750 को बिहार के सुल्तानगंज में 'तिलकपुर' नामक गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम 'सुंदरा मुर्मू' था। तिलका मांझी को 'जाबरा पहाड़िया' के नाम से भी जाना जाता था।
अंग्रेज़ी अत्याचार से त्रस्त होकर आवाज़ उठाई : किशोर जीवन से ही अपने परिवार तथा जाति पर उन्होंने अंग्रेज़ी सत्ता का अत्याचार देखा था। गरीब आदिवासियों की भूमि, खेती, जंगली वृक्षों पर अंग्रेज़ी शासक अपना अधिकार किये हुए थे। आदिवासियों और पर्वतीय सरदारों की लड़ाई रह-रहकर अंग्रेज़ी सत्ता से हो जाती थी लेकिन पर्वतीय जमींदार वर्ग अंग्रेज़ी सत्ता का खुलकर साथ देता था।
भड़क उठी विद्रोह की आग : एक दिन तिलका मांझी ने 'बनैचारी जोर' नामक स्थान से अंग्रेज़ों के विरुद्ध विद्रोह शुरू कर दिया। जंगल, तराई तथा गंगा, ब्रह्मी आदि नदियों की घाटियों में तिलका मांझी अपनी सेना लेकर अंग्रेज़ी सरकार के सैनिक अफसरों के साथ लगातार संघर्ष करते-करते मुंगेर, भागलपुर, संथाल परगना के पर्वतीय इलाकों में छिप-छिप कर लड़ाई लड़ते रहे। वे अंग्रेज़ सैनिकों से मुकाबला करते-करते भागलपुर की ओर बढ़ गए। वहीं से उनके सैनिक छिप-छिपकर अंग्रेज़ी सेना पर अस्त्र प्रहार करने लगे। समय पाकर तिलका माँझी एक ताड़ के पेड़ पर चढ़ गए। ठीक उसी समय घोड़े पर सवार क्लीव लैंड उस ओर आया। इसी समय राजमहल के सुपरिटेंडेंट क्लीव लैंड को तिलका माँझी ने 13 जनवरी, 1784 को अपने तीरों से मार गिराया।
गद्दार ने करवाई गिरफ्तारी : एक रात तिलका मांझी और उनके क्रान्तिकारी साथी, जब एक उत्सव में नाच-गाने की उमंग में खोए थे, तभी अचानक एक गद्दार सरदार जाउदाह ने संथाली वीरों पर आक्रमण कर दिया इसमें अनेक देश भक्तवीर शहीद हुए। कुछ को बन्दी बना लिया गया। तिलका मांझी ने वहां से भागकर सुल्तानगंज के पर्वतीय अंचल में शरण ली। तिलका मांझी एवं उनकी सेना को अब पर्वतीय इलाकों में छिप-छिपकर संघर्ष करना कठिन जान पड़ा। अन्न के अभाव में उनकी सेना भूखों मरने लगी। अब तो वीर मांझी और उनके सैनिकों के आगे एक ही युक्ति थी कि छापामार लड़ाई लड़ी जाये। तिलका मांझी के नेतृत्व में संथाल आदिवासियों ने अंग्रेज़ी सेना पर प्रत्यक्ष रूप से धावा बोल दिया। युद्ध के दरम्यान तिलका मांझी को अंग्रेज़ी सेना ने घेर लिया और बन्दी बना लिया।
इनकी शहादत को सलाम : गिरफ्तारी के बाद सन 1785 में एक वृक्ष में रस्से से बांधकर तिलका मांझी को फ़ांसी दे दी गई। तिलका मांझी ऐसे प्रथम व्यक्ति थे, जिन्होंने भारत को ग़ुलामी से मुक्त कराने के लिए अंग्रेज़ों के विरुद्ध सबसे पहले आवाज़ उठाई थी। तिलका मांझी भारत माता के अमर सपूत के रूप में सदा याद किये जाते रहेंगे।