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ग्राम स्वराज्य की ओर लौटने करने की आवश्यकता : भारद्वाज शुक्ला

VSK JHK 17 07 2020रांची, 16 जुलाई  : वर्तमान परिस्थिति में शहरीकरण ,वैश्वीकरण व भूमंडलीकरण के परिणाम स्वरूप संपूर्ण विश्व एकीकार हो गया है। जिसका सुखद व दुखद दोनों ही परिणाम से हम सभी रूबरू हो रहे हैं। आधुनिकता व भौतिकता की दौड़ में औद्योगीकरण के प्रभाव स्वरूप हम सब भारत के मौलिक परंपराओं, ग्रामीण स्वराज व ग्राम जीवन से विमुख होकर नित्य प्रति बड़े शहरों में पलायित हो रहे हैं। जिसका प्रभाव हमारे रहन सहन, जीवनशैली कार्यशैली, आचार विचार व जीवन संस्कारों पर अवश्य पड़ रहा है।
इन सभी तथ्यों पर विचार करते हुए गांधी जी के द्वारा बताए हुए ग्राम स्वराज्य की ओर लौटने की आवश्यकता है। पुन: कृषि कार्य व कृषि आधारित आयाम को सम्मान देते हुए रोजगार का माध्यम बनाना होगा।
गांधीजी कहते थे कि जब मैं ग्राम स्वराज्य की बात करता हूं तो मेरा आशय आज के गांवों से नहीं होता। आज के गांवों में तो आलस्य और जड़ता है। फूहड़पन है। गांवों के लोगों में आज जीवन दिखाई नहीं देता। उनमें न आशा है न उमंग। भूख धीरे-धीरे उनके प्राणों को चूस रही है। कर्ज से कमर तोड़, गर्दन तोड़ बोझ से वे दबे हैं। मैं जिस देहात की कल्पना करता हूं, वह देहात जड़ नहीं होगा। वह शुद्व चैतन्य होगा। वह गंदगी में और अंधेरे में जानवर की जिंदगी नहीं जिएगा। वहां न हैजा होगा, न प्लेगा होगा, न चेचक होगी। वहां कोई आलस्य में नहीं रह सकता। न ही कोई ऐश-आराम में रह पायेगा। सबको शारीरिक मेहनत करनी होगी। मर्द और औरत दोनों आजादी से रहेंगे।
आदर्श भारतीय गांव इस तरह बसाया और बनाया जाना चाहिए जिससे वह सदा निरोग रह सके। सभी घरों में पर्याप्त प्रकाश और हवा आ-जा सके। ये घर ऐसी ही चीजों के बने हों, जो उनकी पांच मील की सीमा के अंदर उपलब्ध हों। हर मकान के आसपास, आगे या पीछे इतना बड़ा आंगन और बाड़ी हो, जिसमें गृहस्थ अपने पशुओं को रख सकें और अपने लिए साग-भाजी लगा सकें। गांव में जरुरत के अनुसार कुएं हों, जिनसे गांव के सब आदमी पानी भर सकें। गांव की गलियां और रास्ते साफ रहें। गांव की अपनी गोचर भूमि हो। एक सहकारी गोशाला हो। सबके लिए पूजाघर या मंदिर आदि हों। ऐसी प्राथमिक और माध्यमिक शालाएं हों, जिनमें बुनियादी तालीम हों। उद्योग कौशल की शिक्षा प्रधान हो। ज्ञान की साधना भी होती रहे। गांव के अपने मामलों को निपटाने के लिए ग्राम पंचायत हो। अपनी जरुरत के लिए अनाज, दूध, साग भाजी, फल, कपास, सूत, खादी सहित सभी आवश्यक व उपयोगी वस्तुएं खुद गांव में पैदा हो। इस तरह हर एक गांव का पहला काम यही होगा कि वह अपनी जरुरत का तमाम अनाज और कपड़े के लिए जरुरी कपास खुद पैदा करे। गांव के मवेशियों के चरने के लिए पर्याप्त जमीन हो और बच्चों तथा बड़ों के लिए खेलकूद के सुव्यवस्थित मैदान हों। सार्वजनिक सभा के लिए स्थान हो। हर गांव में अपनी रंगशाला, पाठशाला, स्वास्थ्य शाला और सभा-भवन होने चाहिए।
गांधीजी यह भी चाहते थे कि प्रत्येक गांव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के मामले में स्वावलंबी हो तभी वहां सच्चा ग्राम-स्वराज्य कायम हो सकता है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने ग्रामोद्योग की उन्नति के लिए कुटीर उद्योगों को बढ़ाने पर बल दिया जिसमें उनके द्वारा चरखा तथा खादी का प्रचार शामिल था। ग्रामोद्योगों की प्रगति के लिए ही उन्होंने मशीनों के बजाय हाथ-पैर के श्रम पर आधारित उद्योगों को बढ़ाने पर जोर दिया था। गांधीजी द्वारा ग्रामों के विकास व ग्राम स्वराज्य की स्थापना के लिये प्रस्तुत कार्यक्रमों में प्रमुख थे- चरखा व करघा, ग्रामीण व कुटीर उद्योग, सहकारी खेती, ग्राम पंचायतें व सहकारी संस्थाएं, राजनीति व आर्थिक सत्ता का विकेन्द्रीकरण, अस्पृश्यता निवारण, मद्य निषेध, बुनियादी शिक्षा आदि।

‘हिंद स्वराज’ में वे स्पष्ट शब्दों में कहते हैं- ‘मैं आपसे यकीनन कहता हूं कि खेतों में हमारे किसान आज भी निर्भय होकर सोते हैं, जबकि अंग्रेज और आप वहां सोने के लिए आनाकानी करेंगे। किसान किसी के तलवार-बल के बस न तो कभी हुए हैं और न होंगे। वे तलवार चलाना नहीं जानते, न किसी की तलवार से वे डरते हैं। वे मौत को हमेशा अपना तकिया बना कर सोने वाली महान प्रजा हैं। उन्होंने मौत का डर छोड़ दिया है।

गांधी के सपनों के भारत को सजाने के लिए अब समय आ गया है। ग्राम विकास के लिए सरकार के द्वारा त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था कायम की गई है। अब पूर्णरूपेण उनके ऊपर यह जवाबदेही है कि वे अपने ग्राम व क्षेत्र का संपूर्ण सर्वांगीण विकास में समाज का सहयोग लेते हुए भेदभाव रहित, विद्वेष द्वंद, आरोप-प्रत्यारोप से परे होकर ,सकारात्मक व वैज्ञानिक तथा प्रौद्योगिकी का समावेश करते हुए अपनी प्रतिभा व कुशलता का लोहा मनवा राष्ट्र के समृद्धि में सहयोग प्रदान करें।
21 वी शताब्दी में भारत दुनिया के सामने पुन: एक बार सबल- सशक्त, आत्मनिर्भर , युवा व संगठित राष्ट्र के रूप में उभरकर अवश्य सामने आएगा यदि ग्राम स्वराज , ग्रामीण अर्थव्यवस्था व स्वदेशी निर्माण व उपयोग की परंपरा को विकसित किया जाए।
आधुनिक भारतीय युवा को उच्च से उच्चतम शिक्षा से परिपूर्ण होने , चिकित्सकीय, प्रबंधकीय, अभियांत्रिकी क्षमताओं से परिपूर्ण होने के बावजूद राष्ट्र को सशक्त, स्वावलंबी बनाने के लिए ग्राम विकास के क्षेत्र में रुचि लेते हुए अपनी प्रतिभा को इस दिशा में अर्पित करने की आवश्यकता है। प्रजातंत्र परंपरा में अधिक से अधिक शिक्षित, योग्य, अनुभवी व पेशेवर लोगों को रूचि लेकर समाज राष्ट्र को वैभवशाली बनाने की दिशा में आगे आने की आवश्यकता है।

भारद्वाज शुक्ला 

रूरल डेवलपमेंट में स्नातकोत्तर एवं रिसर्च स्कॉलर, वाणिज्य एवं व्यवसाय प्रबंधन विभाग, 

रांची विश्वविद्यालय रांची


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