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जवान-किसान, विज्ञान और अनुसंधान से बने प्रबल हिंदुस्तान

जवान-किसान, विज्ञान और अनुसंधान से बने प्रबल हिंदुस्तानरांची, 21 जुलाई  : देश की एकता अखंडता को कायम रखते हुए वैभवशाली व आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में प्रहरी की भूमिका में सच्ची सेवा व राष्ट्रहित में प्राणों को भी समर्पित करने वाले तीनों सेनाओं के जवान, गर्मी ,वर्षा व ठंडी की समस्याओं से परे होकर आकर्षण व सभी भौतिक सुविधाओं से मुक्त हो जीवन के लिए अति उपयोगी व प्राणियों की क्षुधा की पूर्ति के लिए ग्राम्य जीवन जीते हुए अनवरत खेतों में तपस्या करने वाले किसान तथा विज्ञान के विभिन्न आविष्कारों के लिए अनुसंधान व खोज करते वैज्ञानिकों के कारण ही राष्ट्र वास्तव में प्रगति के मार्ग पर बढ़ते हुए सुरक्षित, संगठित व शक्तिशाली बन सकता है।
राष्ट्र के निर्माण और विकास में सेना की भूमिका जितना महत्वपूर्ण व उपयोगी है उतना ही किसान, विज्ञान और अनुसंधान का भी। सेना ने आजादी के बाद अपनी क्षमता को बढ़ाया है और इस समय सेना के पास संसाधनों की कोई कमी नहीं है। भारतीय सेना विश्व की सर्वश्रेष्ठ सेनाओं की पंक्ति में आकर खड़ी हो गई है।विश्व के किसी भी शक्तिशाली देश को भारत की सेना के साथ सामना करने के लिए बहुत कुछ सोचना पड़ेगा।
किसी ने सही कहा है “भारत गांवों की भूमि है और किसान देश की आत्मा हैं।” किसान बहुत सम्माननीय हैं और हमारे देश में कृषि कार्य को एक महान कर्म माना जाता है। उन्हें “अन्नदाता” भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है “अन्न देने वाला”। इस तर्क के अनुसार भारत में किसानों को एक खुशहाल और समृद्ध होना चाहिए, लेकिन विडंबना यह है कि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है। यही कारण है कि किसानों के बच्चे अपने माता-पिता के परंपरा को आगे नहीं बढ़ाना चाहते हैं। आज किसान रोजी-रोटी की तलाश में कृषि कार्य छोड़ कर शहरों की ओर पलायन करते जा रहे हैं। अगर यही सिलसिला जारी रहा तो एक समय ऐसा आ सकता है जब कोई किसान ही नहीं बचेगा और हमारा देश “खाद्य अधिशेष” से बदल जाएगा, हम भोजन की कमी की समस्या का सामना करने को विवश हो जाएंगे।
हां लोग सोचते हैं कि जब वस्तुओं की कीमतें बढ़ती हैं, तो किसान को लाभ होता है, लेकिन वास्तविकता यह है कि अधिकांश पैसा बिचौलियों द्वारा हड़प लिया जाता है। जब कोई बंपर फसल होती है, तो उत्पादों की कीमत गिर जाती है और कई बार उसे अपनी उपज सरकार को औने-पौने दामों पर या बिचौलियों को बेचनी पड़ती है और जब सूखा या बाढ़ आती है, तो हम सभी जानते ही हैं कि गरीब किसान और बदहाली और तंगहाली में जीने को विवश हो जाता है।
आज पूरे भारतवर्ष की आबादी 135 करोड़ के पार है, सभी किसान की मेहनत वह परिश्रम की वजह से ही रोटी खा पाते हैं या अन्य स्वादिष्ट व्यंजनों का आनंद उठा पाते हैं। किसान हैं तो हमारे जीवन में पोषण है और पोषण है तो सेहत है, और आप यह भलीभांति तो जानते ही होंगे कि सेहत हजार नेमत, मतलब सेहत हो तो जिंदगी में बहार है, जिंदगी गुलजार है। किसानों की हालत बद से बदतर होती जा रही है। न जाने कब स्थिति सुधरेगी ? न जाने कब भारत एक बार फिर से कृषि प्रधान देश बनेगा ?
एक ओर जहाँ भारत के किसान देश की खाद्य सुरक्षा में अपना योगदान देते हैं वहीं दूसरी ओर हमारे जवान सीमाओं की सुरक्षा में मुस्तैदी से तैनात रहते हैं। हरियाणा में बहुत से ऐसे परिवार हैं जिनमें एक बेटा किसान है तो दूसरा जवान है। सही मायनों में जय जवान, जय किसान की अवधारणा हरियाणा में चरितार्थ होती है। बात रही जवान और किसान की तो हम लोग उनके योगदान की गिनती तो कर ही नहीं सकते हैं, चाह कर भी नहीं कर सकते हैं। इन का समाज में योगदान एवं उपलब्धियां अमूल्य है, अतुल्य हैं ।
भारतीय विज्ञान के लिए 2018 एक सार्थक वर्ष रहा जिसमें महत्वपूर्ण उपलब्धियों में उड्डयन श्रेणी के जैव ईंधन का उत्पादन, दृष्टिबाधितों के पढ़ने में मदद करने वाली मशीन -दिव्य नयन, सर्वाइकल कैंसर, टीबी, डेंगू के निदान के लिए किफायती उपकरणों का निर्माण और भूस्खलन के संबंध में सही समय पर चेतावनी प्रणाली जैसी चीजें शामिल है। जवान एवं सैनिक अपनी जान की बाजी लगाकर हमारी रक्षा करता है, उस जवान का देश प्रेम निश्छल है, अमर है। उस सैनिक के घर पर भी पत्नी है, बच्चे हैं, मां बाप है, परंतु वह इन सब एहसासों में बंध कर नहीं रहना चाहता है।
वह मां भारती की रक्षा हेतु अपनी जान भी सहर्ष न्योछावर करना चाहता है। देश प्रेम बाकी सभी प्रेम के संबंधों और भावों से सर्वोपरि है, सर्वोच्च है। इस हद तक देश प्रेम की भावना मन में होना के व्यक्ति अपनी जान की ही परवाह ना करें, यह कोई आम बात नहीं है, यह कोई खास इंसान ही कर सकता है, आम व्यक्ति के बस की बात ही नहीं है। आगे जब बात विज्ञान की करते हैं तो विज्ञान ही है जिसके माध्यम से भारत अपने वर्तमान को बदल रहा है और अपने भविष्य को सुरक्षित रखने के लिए निरंतर कार्य कर रहा है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में पोखरण परमाणु परीक्षण के बाद जय जवान, जय किसान, जय विज्ञान का नारा दिया था। गौरतलब है कि इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने 1965 में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली को संबोधित करते हुए जय जवान, जय किसान का नारा दिया था। और अब वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा इसके साथ जय अनुसंधान जुड़ने की बात कही गई। अब जय जवान जय किसान जय विज्ञान और जय अनुसंधान का नारा बोला जाएगा।
दरअसल यह नारा सरहद पर खड़े जवान एवं खेत में काम करते किसान के साथ-साथ देश की तरक्की के लिए दिन-रात प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान से नव वरदान के लिए अनुसंधान कर रहे वैज्ञानिकों की अटूट मेहनत, निष्ठा एवं श्रम को दर्शाता है। प्रधानमंत्री जी ने साइंस को जनसामान्य की सेंस से जोड़ने की बात कही है। आज कम कीमत में कारगर तकनीक विकसित करने की जरूरत है। बंजर धरती को उपजाऊ, कम वर्षा की समस्या से निजात दिलाने की दिशा में काम किया जाना चाहिए। अब ज्यादा किसान दो हेक्टेयर जमीन से कम के मालिक हैं, ऐसे में वह कम जमीन में कैसे अधिक मुनाफे वाली खेती कर सकते हैं, इस पर खोज की जानी चाहिए।
हम अपने देश के कम बारिश वाले इलाकों में बेहतर और वैज्ञानिक ढंग से ड्रोन मैनेजमेंट पर काम कर सकते हैं, क्या प्राकृतिक आपदाओं की भविष्यवाणी के क्षेत्र में और सुधार कर सकते हैं।
हमें सोचना होगा कि क्या हम देश में दशकों से चली आ रही मानवीय समस्याओं के समाधान के लिए टेक्नोलॉजी का बेहतर उपयोग कर सकते हैं। सेंसर, ड्रोन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसी खोज का पैकेज बनाकर हम किसानों के लिए कैसे बेहतरीन खोज कर सकते हैं, उस पर बल दिया जाना चाहिए। वैज्ञानिकों से उम्मीद के साथ भरोसा भी है कि वे वैश्विक महामारी कोरोनावायरस के बेहतर इलाज करने का सही तरीका साइंस एवं टेक्नोलॉजी में ढूंढ निकालें जिससे उपस्थित समस्याओं का वैज्ञानिक व उपयोगी समाधान उपलब्ध कराया जा सके।
भारत के तीन अंतरिक्ष यात्रियों को गगनयान के जरिए 2022 में अंतरिक्ष में भेजने की तैयारी चल रही है। इसरो ने इसके लिए विशेष टेक्नोलॉजी तैयार की है। हमें देश की समृद्धि के लिए उत्प्रेरित, तैयार होना चाहिए और बदलाव को प्रबंधन करना चाहिए। अनुसंधान और विकास में हमारी शक्तियां हमारी राष्ट्रीय प्रयोगशालाओं, केंद्रीय विश्वविद्यालयों, आईआईटी, आईआईएससी, टीआईएफआर और आईआईएसईआर के आधार पर निर्मित हैं। हालांकि देश 95 प्रतिशत विद्यार्थी राज्यों के विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों में अध्ययन करते हैं। प्रधानमंत्री जी ने कहा है कि इन विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में ज्ञान विज्ञान के साथ-साथ अनुसंधान का सशक्त माहौल बनाए जाने की नितांत जरूरत है।
हम यह जानते हैं कि किसी भी राष्ट्र की प्रगति विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में शिक्षा और अनुसंधान में हुई निरंतर वृद्धि पर निर्भर करती है। इस उद्देश्य को पूरा करने के लिए हमारा अनुसंधान अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरुप होना चाहिए। भारतीय शिक्षा और अनुसंधान की प्रमुख कमजोरी भारतीय अनुसंधान में विश्वविद्यालयों द्वारा हिस्सेदारी का अपेक्षाकृत बहुत कम होना है। सरकार को अनुसंधान और विकास की गतिविधियों के लिए अपने आवंटन को बढ़ाने तथा संस्थागत स्तर पर, शिक्षण के साथ अनुसंधान को भी जोड़ने की जरूरत है। सरकार द्वारा संकाय विकास में निवेश और अनुसंधान के लिए प्रोत्साहन प्रदान करने तथा अनुसंधान के क्षेत्र में संस्थाओं के बीच सहयोगात्मक प्रयासों को बढ़ावा देने की भी जरूरत है।

भारद्वाज शुक्ल

पीएचडी रिसर्च स्कॉलर,रूरल डेवलपमेंट,रांची विश्वविद्यालय 


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