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पहली जेल यात्रा करने वाली क्रांतिकारी सरस्वती देवी

संजय कृष्ण

रांची, 27 फरवरी : देश की आजादी में हजारीबाग का महत्वपूर्ण योगदान रहा। हजारीबाग को इसलिए याद किया जाता है, यहां के सेंट्रल जेल में देश भर के बड़े-बड़े नेताओं को गिफ्तार कर यहां कैद कर दिया जाता। जयप्रकाश नारायण अपने साथियों के साथ इसी जेल से फरार हुए थे। पर बहुत कम लोग जानते हैं कि यहां की सरस्वती देवी ने 1921 में पर्दा प्रथा के खिलाफ आंदोलन शुरू किया था। यही नहीं, स्वतंत्रता के लिए बिहार की पहली जेल जाने वाली महिला सरस्वती देवी ही थीं।

स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी

सरस्वती देवी का जन्म हजारीबाग जिले के बिहारी दुर्गा मंडप के पास पांच फरवरी 1901 को हुआ था। इनके पिता राय विष्णु दयाल लाल सिन्हा संत कोलम्बा महाविद्यालय, हजारीबाग में उर्दू, फारसी एवं अरबी भाषा के अध्यापक थे। सरस्वती देवी का विवाह मात्र तेरह साल की उम्र में हजारीबाग के दारू गांव के केदारनाथ सहाय के साथ हुआ। विवाह के बाद सरस्वती देवी अपने ससुराल आ गईं। केदारनाथ सहाय वकील थे। इसके साथ वे डा. राजेंद्र प्रसाद के बिहार स्टूडेंट वेलफेयर सोसाइटी से भी जुड़े थे। इस कारण वेलफेयर सोसाइटी के कई कार्यकर्ता उनके यहां आया-जाया करते थे। सरस्वती देवी का इन लोगों से बराबर बातचीत होती रहती थी। सोसाइटी के लोगों से देश की आजादी पर भी चर्चा करती रहती थी। सरस्वती देवी ने स्वाधीनता आंदोलन में प्रवेश करने की इच्छा जताई थी और वह 1916 -17 में ही स्वाधीनता आंदोलन से जुड़ गई थी। 1921 में गांधीजी के आह्वान पर सरस्वती देवी ने असहयोग आंदोलन में हिस्सा लिया था। उन्हें गिरफ्तार कर हजारीबाग सेंट्रल जेल भेज दिया गया। जेल से बाहर आने के बाद सरस्वती देवी हजारीबाग के कृष्ण बल्लभ सहाय, बजरंग सहाय, त्रिवेणी सिंह आदि स्वाधीनता सेनानियों के साथ मिलकर कदम से कदम मिलाकर चलीं। महात्मा गांधी को 1925 में हजारीबाग लाने का श्रेय भी सरस्वती देवी को जी जाता हे। गांधीजी रांची स्थित दरभंगा हाउस में ठहरे थे। हजारीबाग से सरस्वती देवी जी के साथ बाबू राम नारायण सिंह और त्रिवेणी प्रसाद रांची आए। सूरत बाबू ने अपना वाहन उपलब्ध कराया था। गांधीजी को लेकर सरस्वती देवी अपने निवास स्थान आईं। उस वक्त उनका बड़ा बेटा टाइफाइड से ग्रस्त था। सरस्वती देवी ने महात्मा गांधी से कहा कि आप इसके सिर पर हाथ रख दीजिए वह ठीक हो जाएगा। इस पर गांधीजी ने कहा कि मैं कोई बाबा थोड़े हंू, पर सरस्वती देवी के आग्रह पर गांधजी ने ने उनके पुत्र के सिर पर हाथ रखा और वह ठीक हो गया। इसके उपरान्त महात्मा गांधी रात्रि विश्राम सूरत बाबू के निवास स्थान पर किया। मटवारी मैदान में आम सभा आयोजित की गई, जिसमें महात्मा गांधी ने लोगों को संबोधित किया और चरखा-आजादी का मतलब समझाया।

गिरफ्तारी और जेल की यात्रा

सरस्वती देवी देश की आजादी में पूरे प्राण प्रण से लगी थीं। उनका अहिंसक आंदोलन गति पकड़ रहा था। लोग जुड़ रहे थे। अंग्रेजी सत्ता को यह बर्दाश्त नहीं हुआ और उन्हें 1929 में गिरफ्तार कर भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। उस समय उनके साथ उनके छोटे पुत्र द्वारिका नाथ सहाय जो एक वर्ष के थे, इसलिए देवी जी अपने साथ उन्हें भी जेल ले गई थी। उस जेल से उन दोनों की रिहाई 1931 ई में हुई थी। जेल से बाहर आने के बाद फिर वह खादी-चरखा के प्रचार में जुट गईं। आठ मार्च चैनपुर के डुमरी में सभा हुई, जिसमें बजरंग सहाय, केबी सहाय और सरस्वती देवी ने संबोधित किया। यहां करीब छह सौ संताली सभा में मौजूद थे। गांव-गांव कांगेे्रस कमेटी के गठन पर बल दिया गया। नौ मार्च 1931 को लगभग 300 लोगों की भीड़ में सरस्वती देवी ने भाषण दिया। उस सभा में छोटानागपुर के बाबू राम नारायण सिंह और बजंरग सहाय भी उपस्थित थे।

भारत छोड़ो आंदोलन

1940 में रामगढ़ कांग्रेस का अधिवेशन हुआ। इस अधिवेशन से लौटने के क्रम में राजेन्द्र प्रसाद बीमार पड़ गए थे और दो दिनों तक देवी जी के निवास स्थान पर रहे थे। दो साल बाद जब 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान जब सभी राष्ट्रीय नेता गिरफ्तार कर लिए गए थे और हजारीबाग में रहने के कारण इनकी गिरफ्तारी नहीं की जा सकी थी तब वे संत कोलम्बा महाविद्यालय, हजारीबाग में जा कर छात्रों के बीच यह कहकर कि सारे राष्ट्रीय नेता जेल में हैं और आप क्लास कर रहें हैं, उन्होने उनके सामने चूडिय़ा फेंक दी। फलस्वरूप सभी छात्र उनके पीछे आ गए और दिनभर शहर में घूम-घूम कर नारेबाजी एवं हंगामा करते रहे। शाम में उन्हें गिरफ्तार कर भागलपुर जेल भेज दिया गया। जब वे जेल जा रही थी उसी क्रम में भागलपुर के छात्रों द्वारा विरोध किया गया जिसके कारण ब्रिटिश प्रशासन ने मुक्त कर दिया और तुरंत उन्होंने भागलपुर के मैदान में जोशीला भाषण दिया। यहां से फिर वह गिरफ्तार हो गईं। बड़े पुत्र राम शरण सहाय को भी इस स्वतंत्रता आंदोलन में झोंक दिया था। राम शरण को भी हजारीबाग से 1942 में गिरफ्तार कर हजारीबाग सेंट्रल जेल में और फिर 1943 में कैंप जेल बांकीपुर, पटना भेज दिया गया। सरस्वती देवी व उनके पुत्र 1944 में जेल से रिहा हुए। हजारीबाग में कांग्रेस का कार्यालय इनके निवास स्थान में ही चलता था। खान अब्दुल गफ्फार खान हजारीबाग केंद्रीय कारा से 1940-41 में रिहा कर दिए गए थे। उनकी रिहाई के बाद उन्हे प्रशासन की तरफ से थर्ड क्लास का टिकट मुहैया कराया गया। उन्होनें उस टिकट को फाड़ दिया एवं हजारीबाग में कांग्रेस कार्यालय, जो सरस्वती देवी के निवास स्थान में ही था, खान यहीं चार दिन रूके रहे। उस समय के तात्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बाबू अनुग्रह नारायण सिंह को इसकी खबर दी गई। इसके बाद बाबू अनुग्रह नारायण सिंह ने उन्हें गाड़ी भेज कर पटना बुलाया और फिर उन्हें वहां से दिल्ली होते हुए उनके निवास स्थान भेज दिया।

घूम-घूमकर बांटी मिठाइयां

15 अगस्त 1947 में जब देश आजाद हुआ तो सरस्वती देवी ने पूरे हजारीबाग में घूम-घूम कर मिठाइयां बांटी। आजादी के बाद मोहम्मद अली जिन्ना की अगुवाई में देश के बंटवारा हो जाने के उपरांत पाकिस्तान स्थित पूर्वी बंगाल के नोआखाली में हिंदू मुस्लिम का बड़ दंगा छिड़ गया जिसमें हिंदुओं का व्यापक रूप से कत्लेआम हुआ था। इसकी खबर मिलते ही वे नोआखाली में दंगा शांत कराने चल पड़ीं। वहां जाने के क्रम में कलकत्ता में उनकी मुलाकात गांधीजी से हुई। गांधीजी ने उन्हें यह कहकर कि सरस्वती, तुम मेरी बेटी हो, मैं तुम्हे वहां जाने की इजाजत नहीं दूंगा। मैं भी वहां रहा हूं तो मेरे पर भी हमला हो सकता है। इसके बाद कलकता में रूक कर तारकेश्वर धाम शिव मंदिर में शांति के लिए 21 दिन का उपवास रखा।

विधानसभा में प्रतिनिधित्व

1937 में जब बिहार विधानसभा ने महिलाओं के लिए चार सीटें आरक्षित की थी। तब उन्होंने इसका प्रतिनिधित्व किया था। आजादी के बाद 1947-52 तक भागलपुर से एमएलए रहीं। 1952-58 में वे भागलपुर से एमएलसी चुनी गईं। स्वास्थ्य कारणों के चलते 1952 में राजनीति से संन्यास ले लिया था। इसके बाद कुछ दिनों तक तीर्थाटन किया। मथुरा, वृंदावन और अयोध्या की यात्रा की। अयोध्या में रामजन्म भूमि मुक्ति आंदोलन में भी उस समय भाग लिया। 10 दिसंबर 1958 को मात्र 57 वर्ष की उम्र में इस दुनिया से विदा हो गई। उनका अंतिम संस्कार बनारस में किया गया।


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