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दिल्ली : राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक प. प. श्री मोहनराव भागवत ने हिन्दुत्व की संकल्पन को स्पष्ट करते हुए कहा, कि हिन्दुत्व अर्थात पावन Bharat VSK 18 09 18 जीवन मूल्यों का समुच्चय, यह इस देश का आधार और प्राण है, इसी के आधार पर समतायुक्त, शोषणमुक्त समाज का निर्माण संघ का लक्ष्य है. उन्होंने कहा, कि संघ का लक्ष्य हिन्दू राष्ट्र को परम वैभव की स्थिति में ले जाना है. संघ की दृष्टि में भारत का वह हर व्यक्ति हिन्दू है जो देश से प्रेम करता है, अपने पूर्वजों पर गर्व करता है और अपनी संस्कृति पर अभिमान करता है ,भले ही वह वह इस संस्कृति को भारतीय कहता हो, आर्य कहता हो या सनातन कहता हो। प. प. श्री भागवत ने यह बात विज्ञान भवन में कही. वह भविष्य का भारत संघ का दृष्टिकोण विषय पर आयोजित व्याख्यानमाला के दूसरे दिन प्रबुद्ध वर्ग को संबोधित कर रहे थे । श्री भागवत ने संघ के लक्ष्य को स्पष्ट करते हुए कहा, कि एक समर्थ्य, शक्तिशाली और संपन्न भारत विश्व के प्रत्येक कमजोर समाज का संबल होगा। यह सामर्थ्यशील होगा साथ ही अनुशासन और एकात्मता से प्रेरित भी होगा. श्री मोहनराव भागवत ने कहा, कि संघ का विचार हिन्दुत्व का Bharat VSK 18 09 18 विचार है। यह पुरातन विचार और सबका माना हुआ सर्वसम्मत विचार है, इसलिए हम अपने पुरूखों के बताए मार्ग पर चल रहे हैं। अगर प्रश्न हो, कि हिन्दुत्व क्या है तो कहना पड़ेगा, कि सबके कल्याण में अपना कल्याण, ऐसा जीवन जीने का अनुशासन देने वाला हिन्दुत्व  है और यह सभी विविधताओं को स्वीकार करता है। राष्ट्र के उत्थान के लिए सामाजिक पूंजी की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए श्री मोहनराव भागवत ने जापान का उदाहरण दिया और कहा, कि संघ अनुशासित सामाजिक जीवन और समाजहित को सर्वोपरि मानता है. देश के लिए कोई भी साहस करने, कोई भी त्याग करने और देश का हर काम उत्कृष्ट रूप से करने से ही एक शक्ति संपन्न राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है । स्वयंसेवकों को केन्द्रित करते हुए उन्होंने कहा, कि स्वयंसेवक समाज के लिए आवश्यक कार्यों को अपने हाथ में लेते हैं और अपनी क्षमता और इच्छानुसार विभिन्न क्षेत्र में काम करते हैं। संघ के साथ उनका परस्पर विचार-विमर्श होता है लेकिन वे स्वावलंबी और स्वायत्त रूप से कार्य करते हैं ।  हिंदू राष्ट्र के बारे में बताते हुए श्री मोहन भागवत ने कहा की संघ का काम बंधुभाव के लिए है और इस बंधुभाव के लिए एक ही आधार है विविधता में एकता. वह विचार देनेवाला हमारा शाश्वत विचार दर्शन है। उसको दुनिया हिंदुत्व कहती है , इसलिए हम कहतेBharat VSK 18 09 18 हैं कि हमारा हिंदू राष्ट्र है।  हिंदू राष्ट्र है इसका मतलब इसमें मुसलमान नहीं चाहिए , ऐसा बिल्कुल नहीं होता । जिस दिन यह कहा जाएगा कि यहां मुसलमान नहीं चाहिए,  उस दिन वह हिंदुत्व नहीं रहेगा वह तो विश्व कुटुंब की बात करता है ।संघ और राजनीति के संबंधों को स्पष्ट करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने कहा, कि संघ ने जन्म से ही निश्चित किया है, कि राजनीति से हमारा संगठन दूर रहेगा। संघ का कोई भी पदाधिकारी किसी भी राजनीतिक दल में पदाधिकारी नहीं बनेगा। संघ का काम संपूर्ण समाज को जोड़ना है, राज कौन करे, इसका चुनाव जनता करती है. किंतु राष्ट्र हित में राज्य कैसा चले, इसके बारे में हमारा मत है और इसके लिए हम लोकतांत्रिक रीति से प्रयास भी करते हैं। संघ राजनीति से दूर रहता है। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं, कि संघ घुसपैठियों के बार में न बोले. इस तरह के प्रश्न राष्ट्रीय प्रश्न हैं। राजनीति की उसमें प्रमुख भूमिका है, परंतु प्रश्नों के सुलझने और न सुलझने का परिणाम पूरे देश पर होता है। इसलिए ऐसे विषयों पर संघ सदैव से अपना मत रखता आया है. उन्होंने कहा, कि कुछ लोग बोलते हैं, कि दूसरे दलों में स्वयंसेवक ज्यादा क्यों नहीं हैं ? यह हमारा प्रश्न नहीं है। क्यों दूसरे दलों में जाने की उनकी इच्छा नहीं होती यह उनको विचार करना है। हम किसी भी स्वयंसेवक को किसी विशेष दल में कार्य करने को नहीं कहते ।श्री भागवत ने महिलाओं को केन्द्रित करते हुए कहा, कि हमारी संस्कृति में महिलाओं को देवी माना गया है। लेकिन असल में उनकी हालत देखते हैं, तो ठीक नहीं दिखायी देती. हमारा मानना है, कि समाज का एक हिस्सा होने के नाते महिलाएं समाज जीवन के सभी प्रयासों में बराबरी की हिस्सेदार हैं और जिम्मेदार भी. इसलिए उनके साथ समान व्यवहार होना चाहिए। आज कई क्षेत्रों में महिलाएं पुरूषों से अच्छा काम कर रही हैं।  इसलिए महिला और पुरूष परस्पर एक-दूसरे के पूरक हैं । बंधुत्व का वैचारिक अधिष्ठान हिन्दुत्व है । महिलाएं न देवी हैं, न दासी, वे राष्ट्र के विकास में पुरूषोंकी बराबर की साझीदार,जिम्मेवार और हिस्सेदार हैं ।देशभक्ति, पूर्वजों का गौरव और अपनी संस्कृति से प्रेम हिन्दुत्व की पहचान है।

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