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इस्लामिक जिहाद के नाम पर मुस्लिम महिलाओं की बर्बर हत्या यह कैसा जिहाद है, मुसलमान ही मुसलमान को ही मार रहा है : आचार्य श्री विष्णुगुप्त

इस्लामिक जिहाद के नाम पर मुस्लिम महिलाओं की बर्बर हत्या यह कैसा जिहाद है, मुसलमान ही मुसलमान को ही मार रहा है : आचार्य श्री विष्णुगुप्तरांची, 29 मई मुस्लिम आतंकवादियों-कट्टरपंथियों की गोलियों से बलिदान हुई आर्टिस्ट अमरीना भट्ट के पिता सिज्जर मोहम्मद भट्ट ने बड़ा ही विचारनीय प्रश्न खड़ा किया है उनका कहना है कि मुस्लिम आतंकवादियों और कट्टरपंथियों का यह कैसा जिहाद है जिसमें मुसलमान ही, मुसलमान को मार रहा है। सिज्जर मोहम्मद भट्ट की पीड़ा को समझना भी जरूरी है। उन पर एक तरह से पहाड़ टूट आया है। उनकी बेटी अमरीना भट्ट परिवार की एक मात्र कमाने वाली सदस्य थी। पूरा परिवार अमरीना भट्ट की कमाई पर निर्भर था। सिज्जर मोहम्मद भट्ट अपनी पीडा व्यक्त करते हुए कहते हैं कि अब बुढ़ापे की लाटी कौन उठायेगा वह बेटी नहीं बल्कि मेरे लिए बेटा से भी बढ़ कर थी मुस्लिम आतंकवादियों और कट्टरपंथियों ने मेरी बेटी की हत्या कर मेरी दुनिया ही उजाड़ दी जब मेरी बेटी मेरे पास थी तब मैं बादशाह था पर उसे मार कर मुझे फकीर बना दिया गया। उनकी चिंता यह भी है कि अब उनकी बीमारी का खर्च कौन उठायेगा और परिवार की जरूरतों कोन पूरा करेगा ? मुस्लिम आतंकवादी और मुस्लिम कट्टरपंथियों की नाराजगी क्या थी ? वास्तव में अमरीना भट्ट की लोकप्रियता से मुस्लिम आतंकवादी और कट्टरपंथियों को गुस्सा था। मुस्लिम कट्टरपंथी कला और संगीत के दुश्मन होते हैं। ये कला और संगीत को इस्लामिक मान्यताओं से बाहर की बातें मानते हैं।

अमरीना भट्ट कौन थी और उसकी हत्या कैसे हुई ? अमरीना भट्ट कश्मीर की रहने वाली थी और वह एक टीवी कलाकार थी उसने दूरदर्शन पर प्रसारित होने वाले अनेक कार्यक्रमों में अभिनय किया था। उसकी पहचान एक देशज कलाकार के रूप में होती थी। एक छोटे से गांव और एक गरीब परिवार का प्रतिनिधित्व करने वाली अमरीना भट्ट की जिंदगी संघर्षमय थी। ऐसे भी इस्लामिक मान्यताओं वाले समाज में महिलाओं की सक्रियता और लक्ष्य तक पहुंचना आसान नहीं होता है खासकर कला और संगीत के क्षेत्र में आगे बढ़कर हस्ती बनना मुश्किल होता है, क्योंकि खतरनाक और हिंसक चुनौतियों से जुझना पड़ता है। निश्चित तौर पर अमरीना भट्ट ने मजहबी समाज की हिंसक और खतरनाक तथा जानलेवा चुनौतियों से जुझ कर टीवी आर्टिस्ट बनी थी और लोगों के बीच अपनी जगह बनायी थी। कश्मीर में अमरीना भट्ट का नाम बहुत जाना पहचाना था। इधर कुछ सालो से वह अभिनय के साथ ही साथ गाने भी लगी थी। उसके घर पर हथियार बंद मुस्लिम आतंकवादी आते हैं और घर से बाहर उन पर गोलियों की बरसात कर देते हैं। इसी के साथ एक उभरती हुई कलाकार की जिंदगी खामोश हो जाती है।

इस्लामिक मान्यताओं वाले समाज में अमरीना भट्ट की हत्या कोई अकेली घटना नहीं है। दर्जनों ही नहीं बल्कि हजारो ऐसे उदाहरण सामने हैं जिसमें मजबही रूढ़ियों की बलि वेदी पर मासूम और उभरती हुई महिला कलाकारों को सरेआम चढ़ा दिया जाता है। मुस्लिम देशों में ऐसी घटनाएं आम बात होती है। पाकिस्तान में रेश्मा, आश्या, सुमबुल खान, मुसरत शाहीन आदि कई उदाहरण हैं। पाकिस्तान की अभिनेत्री कंदील बलोच की हत्या दुनिया में काफी चर्चित हुई थी। कदील बलोच पाकिस्तान के बलोच इलाके की रहने वाली थी। कंदील पाकिस्तान की जानी-मानी माॅडल और अभिनेत्री थी। उसकी दिलफेक अदाएं काफी मशहूर थी। उसकी चर्चा पाकिस्तान के राजनीतिज्ञों और सेना के अधिकारियों के साथ खूब होती थी। उसकी बोल्ड बातें तहलका मचाती थी। जिसके कारण वह हमेशा चर्चे में रहती थी। पर उसकी हत्या कोई और नहीं बल्कि उसके परिवार वालों ने ही कर दी थी। कंदील बलोच के भाई ने ही उसकी हत्या की थी। हत्या करने वाले भाई का बयान था कि उसकी बहन इस्लाम की मान्यताओं की अवहेलना करती थी और इस्लाम की खिल्ली उड़ाती थी, इसलिए उसकी हत्या उन्होने की थी। हत्या के आरोप में कंदील का भाई गिरफ्तार भी हुआ था। कंदील के माता-पिता ने भी अपने बेटे के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराया था। पर बाद में कोर्ट में कंदील के माता-पिता अपने फर्ज और ईमानदारी से मुकर गये। इस कारण हत्यारे भाई को सजा नहीं हुई और कंदील बलोच को न्याय नहीं मिला।

इस्लामिक मान्यताओं को हथकडा बना कर आतंकवादी और कट्टरपंथी अपना खेल खेलते हैं और महिलाओं की जिंदगी न केवल नर्क बनाते हैं बल्कि उनके प्राकृतिक अधिकार से भी वंचित करते हैं। इसका एक उदाहरण तालिबान हैं। तालिबान सिर्फ अफगानिस्तान में ही नहीं है। तालिबान सिर्फ आतंकवादी संगठन नहीं है। तालिबान एक जिहादी और हिंसक मानसिकता है। यह जिहादी मानसिकता सिर्फ अफगानिस्तान तक सीमित है, ऐसा नहीं है। यह जिहादी मानिसकता अफगानिस्तान से बाहर भी सक्रिय है। भारत में भी सक्रिय है, पाकिस्तान में भी सक्रिय है, मुस्लिम देशों में स्थायी तौर पर सक्रिय रहती है। यूरोप और अमेरिका में भी यह मानसिकता सक्रिय रहती है। जहां पर भी मुस्लिम आबादी है वहां पर यह तालिबानी मानसिकता सक्रिय है। अफगानिस्तान में तालिबान की पुनः वापसी जैसे ही हुई वैसे ही गीत-संगीत और महिलाओं के अभिनय के साथ ही साथ महिलाओं की सामूहिक स्तर पर होने वाली हर सक्रियताओं पर चाबुक चला दिया गया। महिलाओं की आधुनिक और जरूरी शिक्षा पर भी प्रतिबंध लगा दिये गये हैं। आधुनिक और जरूरी शिक्षा को जारी रखने वाली माहिलाओं पर हिंसा की तालिबानी सक्रियता हमेशा जारी रहती है।

कई मुस्लिम देशों में महिलाएं तो स्वयं घर से बाहर कदम नहीं रख सकती हैं। घर के बाहर कदम रखने के लिए उन्हें परिवार के पुरूष सदस्य का साथ होना जरूरी है। अगर पुरूष सदस्य साथ नहीं होता तो फिर उन पर हिंसा बरपती है, उनकी जिंदगी खतरे में होती है। खेल के मैदान में मुस्लिम महिलाएं नहीं जा सकती हैं। पुरूषों के साथ बैठ कर कोई खेल नहीं देख सकती हैं। इसके अलावा मुस्लिम महिलाएं फिल्मों या सीरियलों में अभिनय भी नहीं कर सकती हैं। मुस्लिम महिलाओं के अंदर पर्दा व्यवस्था जगजाहिर है। घोर कट्टरपंथी मुस्लिम देशों में महिलाएं पर्दा व्यवस्था की गुलाम होती है। पश्चिम के देशों में भी मुस्लिम महिलाओं की इस कसौटी पर स्थिति गुलाम की तरह है। हालांकि यूरोप और अमेरिका का समाज उदार है और महिलाओं की आजादी भी प्रेरक है। फ्रांस और आस्टेलिया जैसे देशों ने मुस्लिम महिलाओं की गुलामी मानसिकता से निकालने की कई कोशिशें की हैं। उल्लेखनीय है कि फ्रांस और आस्टेलिया जैसे देशों ने मुस्लिम महिलाओं की बुर्का पहनने की गुलामी पर प्रतिबंध लगाने के कदम भी उठाये। पर बुर्का पर प्रतिबंध के खिलाफ मुस्लिम कट्टरपंथियों ने खूब हाय तौबा मचाया और इस प्रतिबंध को इस्लाम के खिलाफ करार देने का काम किया। भारत में भी हिजाब और बुर्का के नाम पर तालिबानी मानसिकता के प्रसार की खतरनाक साजिशेें जारी हैं।

इस्लामिक जिहाद का सबसे बड़ी कीमत मुस्लिम महिलाएं ही चुकायी हैं और आगे भी चुकाते रहेंगी। जहां भी इस्लामिक जिहाद है वहां मुस्लिम महिलाओं का जीवन नर्क में तब्दील हो चुका है। जिहादी संगठन सबसे पहले महिलाओं को ही अपना शिकार बनाते हैं। यह भी सही है कि इस्लामिक जिहाद का सबसे बड़ा शिकार भी मुसलमान ही है। इराक, लेबनान, अफगानिस्तान, लीबिया, सीरिया, पाकिस्तान, सूडान आदि दर्जनों देश हैं जहां पर मुस्लिम जिहादी ही मुसलमानों का कत्लेआम कर रहे हैं। कहीं सुन्नी आतंकवादी संगठन शिया मुसलमानो का कत्लेआम कर रहा है तो कहीं शिया और सुन्नी मिल कर कूर्द मुसलमानों को हिंसा का शिकार बना रहे हैं।

सबसे बड़ा प्रश्न यह है कि आखिर गीत-संगीत और अन्य कला के विरोध में होने वाली जिहादी हत्याएं रूकेंगी कैसे? इस आधुनिक युग में भी मुस्लिम महिलाओं को इस प्रकार की जिहादी हिंसा से कैसे मुक्त कराया जा सकता है? अमरीना भट्ट की हत्या करने वाले कथित आतंकवादियों को आज न कल सजा जरूर मिलेगी, क्योंकि भारत में कानून का राज है और कानून मजहबी मानसिकताओं का गुलाम नहीं है। लेकिन मुस्लिम देशों में इस प्रकार की जिहदी हिंसाएं रोकनी मुश्किल है। मुस्लिम देशों की मजहबी कानून और मजहबी प्रतिबद्धताएं ही महिलाओ की हत्या के लिए प्रेरित करती हैं। जब तक मुस्लिम समाज खुद सामने आकर महिलाओं की जिहादी हिंसा का विरोध नहीं करेगा तब तक ऐसी जिहादी हत्याएं नहीं रूक सकती हैं। पर मुस्लिम समाज इस्लामिक जिहाद के नाम पर होने वाली हत्याओं के खिलाफ सक्रिय होना जरूरी ही नही समझता है।


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