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सेवा भाव के कारण ही भारतीय संस्कृति जिंदा है - मोहन भागवत

सेवा भाव के कारण ही भारतीय संस्कृति जिंदा है - मोहन भागवतरांची, 21 नवंबर : नई दिल्ली, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉक्टर मोहन भागवत ने कहा कि विश्व की कई सभ्यताएं आई और समाप्त हो गई लेकिन भारतीय सभ्यता इसलिए विश्व गुरु बनने को ओर है क्योंकि वह सबको साथ लेकर आगे बढ़ने में विश्वास रखती हैं और यही कारण है कि इसे कोई नष्ट नहीं कर पाया। 

संत ईश्वर सम्मान में श्री भागवत ने कहा कि समाज के विभिन्न क्षेत्रों में स्वप्रेरणा से निस्वार्थ भाव से कार्य करने वाले को सम्मानित करते हुए कहा कि भारतीय समाज की संरचना ऐसी है कि वह किसी का विरोध नहीं करता। समाज में रहने वाले व्यक्ति पूजा पद्धति को अपनाए या न अपनाए लेकिन समाज का हर व्यक्ति 'सेवा' भाव से अपनी क्षमता अनुसार कार्य करता है। यही एक कार्य है जो मनुष्यता का स्वरुप है। मनुष्य में  यह भाव तभी आता है जब वह पूरी तरह से करुणा, सदाचार, पवित्रता और संयम युक्त हो और किसी के विरोध में नहीं बल्कि सबको साथ लेकर चलने में विश्वास रखता है। उन्होंने कहा कि भारतीय समाज की सबसे बड़ी खूबी यही है कि वह सदियों से सबको प्रेरित करती रही है और आगे भी युवा पीढ़ी को प्रेरित करती रहेंगी। 

उन्होंने कहा कि आजादी के बाद जिस तरह समाज को आगे बढ़ना चाहिए था वह नहीं हो पाया। लेकिन समाज अगर संवेदनाओं को आधार बनाकर और  अहंकार को छोड़कर काम करें तो तेजी से विकास प्राप्त किया जा सकता है। 

डॉक्टर मोहन भागवत ने कहा कि दुनिया में जितने भी महापुरुष हुए हैं उनसेे कही ज्यादा विगत 200 सालों में भारत में हुए हैं। आध्यात्मिक होना और धर्मों को मानना अच्छी बात है लेकिन अध्यात्मिक कभी ये नहीं सिखाता है कि तुम मेरे बताए हुए रास्तों पर चलों बल्कि अध्यात्मिक हमें सिर्फ रास्ता दिखाता है कि मैं इस रास्त पर चला तो अच्छा हुआ और अगर आप भी इस रास्ते पर चले तो आपके साथ भी अच्छा होगा। मनुष्य सिर्फ अपनी संवेदना और विचारों से मनुष्य कहलाता है क्योंकि अगर इन दोनों को अगल कर दिया जाए तो मनुष्य और जानवर मे कोई फर्क नहीं होगा। मनुष्य के अंदर सेवा की भावना होती है जिसके लिए उसे आर्थिक या समाजिक रुप से किसी पर भी निर्भर होने की जरुरत नहीं है क्योंकि अगर हमारी भावना और काम करने का उद्देश्य सच्चा हो तो वह कार्य पूर्ण होने में किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं आएगी। 

श्री भागवत ने कहा कि मनुष्य के पास बुद्धि होना अलग बात है लेकिन उसे एक सही दिशा देना और एक पथ को अपनाना हमारे वश में हैं। सिर्फ आर्थिक दृष्टि से नहीं बल्कि आचरण से अगर हम अपने परिवार को कोई बात सिखाकर चले गए तो आने वाली कोई भी पीढ़ी भटक नहीं सकती और आज के युवा होनहार और जल्दी सिखने की कला हैं जो काफी अच्छा हैै। अपने कर्मों से अपने परिवार पर जो प्रभाव डालते हैं और जो नियम बनाते हैं आने वाली पीढ़ी अमल करती है और उसे आगे बढ़ाती है। उन्होंने कहा कि हमारा जीवन सिर्फ पानी के एक बुलबुले जैसा है। ज्यादा अध्यात्म मे जाना भी गढ्ढे में गिरने जैसा है।

कार्यक्रम में विशिष्ठ अतिथि केंद्रीय मंत्री श्री अर्जुन मुंडा ने कहा कि आज हम एक ऐसे विषय पर यहां इकट्ठे हुए हैं जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में सेवा कार्य बिना किसी पहचान और किसी लाभ की इच्छा है। वे निरंतर अपना काम करते जा रहे हैं। अपनी सेवा यात्रा को आगे बढा रहे हैं कि वे अपने जीवन में कुछ कर सके। नए भारत के निर्माण में इन महानुभावों का विशेष योगदान है इसलिए उनके लिए हम आभार व्यक्त करते हैं। हम सभी अलग-अलग तरीके से सेवा कार्य का काम करते हैं लेकिन जिन्हें कोई दायित्व नहीं दिया गया हो, वह स्वयं की जिम्मेदारी निर्धारित करके काम करता है वह वास्तव में राष्ट्र निर्माण में भारत माता का असली संतान कहलाता है। 

उन्होंने कहा कि आज हमें इस बात पर गर्व होना चाहिए कि इस अमृत महोत्सव में हम नए जनजातीय दिवस मना रहे हैं जिसका अर्थ है कि हम सुदूर क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को साथ मिलाकर राष्ट्र का निर्माण करने का काम कर रहे हैं। हमें इस बात का गर्व है कि बिरसा मुंडा के जन्म जयंती पर न ही सिर्फ इस वर्ष बल्कि आने वाले हर एक वर्ष हम जनजातीय गौरव दिवस मनाएंगे। जब तक देश का सुदूर इलाके में रहने वाले लोग आगे नहीं बढ़ेगे तब तक नए भारत का निर्माण करने का हमारा सपना है वह अधूरा ही रहेगा।

संत ईश्वर फाउंडेशन द्वारा राष्ट्रीय सेवा भारती के सहयोग से संत ईश्वर सम्मान में विभिन्न क्षेत्रों में सेवारत संस्थाओं और महानुभावों को सम्मानित किया गया। हर वर्ष की तरह इस बार भी 12 शख्सियतों और संस्थाओं को संत ईश्वर सेवा सम्मान(₹1,00,000/=) दिया गया। संत ईश्वर सम्मान समिति के अध्यक्ष श्री कपिल खन्ना ने कहा कि सम्मानित संस्थाओं और व्यक्तियों ने समाज में दूसरों के कष्ट को पहचाना, वह समस्याओं को लेकर सरकार के पास नहीं गए, उन्होनें किसी को दोष नहीं दिया, उन्होंने उपलब्ध सीमित संसाधनों से ही समाज कार्य किया और दूसरों की सहायता की. संत ईश्वर फाउंडेशन ने ऐसे समाज सेवकों को खोजकर इस मंच देने का प्रशंसनीय और अद्भुत कार्य किया है। उन्होंने कहा कि इसी तरह के प्रयासों की कड़ी में प्रति वर्ष चार व्यक्तियों और स्वयंसेवी संस्थाओं को संत ईश्वर विशिष्ट सेवा सम्मान( ₹5,00,000/= प्रत्येक) प्रदान की जाती है।

सम्मानित लोगों और संस्थानों में दक्षिण दिनाजपुर, बंगाल से श्री सुकुमार रॉय चौधरी, कन्नड़ कर्नाटक से श्री शांताराम बुदना सिद्धि, गारो हिल्स मेघालय से श्री हजोंग अर्णब, रांची झारखंड से श्रीमती मेधा उरांव, अमरावती महाराष्ट्र से डॉक्टर निरुपमा सुनील देश पांडे, जबलपुर मध्यप्रदेश से श्री आशीष कुमार गुप्ता, जिन्द हरियाणा से श्री धर्मबीर चहल, मैसूर कर्नाटक से श्री ए.पी. चन्द्र शेखर, हरिद्वार उत्तराखंड से साध्वी कमलेश भारती, बिश्वनाथ असम की संस्था रुरल हेंल्थ एंड वी, पटना बिहार की संस्था बिसरा सेवा प्रकल्प, अनंतापुरम की संस्था अमृतवर्शिनी बाल कल्याण आश्रम, ठाणे महाराष्ट्र की संस्था विवेकानंद सेवा मंडल, दिल्ली से श्री चरंजीव मल्होत्रा, अहमदाबाद गुजरात से आर्य चावड़ा, कामरुप असम की संस्था आत्म निर्भर- एक चैलेंज का नाम मुख्य रुप से शामिल हैं। इस मौके पर संत ईश्वर फाउंडेशन के महासचिव सुश्री बृंदा खन्ना ने कहा कि आने वाले भारत का भविष्य काफी उज्ज्वल है क्योंकि वह सही हाथों में है। भारत का युवा इस कोरोना काल में अपनी क्षमताओं का परिचय दे चुका है। जिस कड़ी मेहनत और लगन के साथ उन्होंने देश में आये इतनी बड़ी महामारी का सामना करते हुए सेवा कार्य किए वह अपने आप में एक मिसाल साबित हुआ है। उज्जवल भारत को विश्व गुरु बनानें में भारतीय युवाओं का सबसे बड़ा योगदान होगा


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