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पंजाब में लोकतंत्र या गुंडातंत्र ?

पंजाब में लोकतंत्र या गुंडातंत्र?रांची, 13 जुलाई  : पिछले कई महीनों से पंजाब में किसान आंदोलन के माध्यम से किसानों के रूप में छिपे राजनैतिक गुंडों ने पंजाब में अलग-अलग घटनाओं के माध्यम से पंजाब में लोकतंत्र को सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है. यह तथाकथित किसान अब बहुत ज्यादा अराजकता फैलाने का काम कर रहे हैं, चाहे वह अबोहर में जनप्रतिनिधि अरुण नारंग को निर्वस्त्र करने की घटना हो, चाहे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालयों पर हमले की बात हो और चाहे धनौला में फसलों को उखाड़ने की बात हो और चाहे राजपुरा में भाजपा पदाधिकारियों के साथ मारपीट की घटना हो.

इन सब घटनाओं से पंजाब भी अब बंगाल की राह पर चलता दिखाई दे रहा है. क्या पंजाब में सच में अब लोकतंत्र खत्म हो गया है, जो किसानों के रूप में गुंडों द्वारा बार-बार ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. जिला पटियाला के राजपुरा में शहीद परिवार के सुपुत्र भूपेश अग्रवाल, नगर निगम के चुने हुए प्रतिनिधि शांति सपरा, विकास शर्मा के साथ मीटिंग के दौरान तथाकथित किसानों द्वारा की गई मारपीट और रात 4 बजे तक 14 लोगों को एक साथ एक घर में नजरबंद कर घर की बिजली काटने की घटना, रात को फिर मारपीट की घटना कड़ी निंदा योग्य है. रात को हाईकोर्ट के आदेश के बावजूद भी नजरबंद लोगों पर घर से निकलते वक्त बुरी तरह से पत्थरबाजी की गई.

अब सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के समर्थक सड़कों पर बैठे हैं और जनता को परेशान कर रहे हैं. असली किसान तो खेत में काम कर रहे हैं. किसान आंदोलन अभी डर और दहशत के दम पर ही चल रहा है. धरने में बंगाल की बेटी के साथ रेप घटना ने भी तथाकथित किसान आंदोलन की कलई खोल दी है. राजपुरा में भी इस तरह जानलेवा हमला करने वाले यह लोग कभी किसान नहीं हो सकते, यह तो गुंडे हैं..

पर, यहां सवाल ये भी पैदा होता है कि

– तथाकथित किसानों का गुंडागर्दी के रूप में ये कैसा विरोध?

– क्या किसान भी कभी दूसरे किसान द्वारा लगाई फसल को नष्ट कर सकता है? (जैसा कि घटना धनौला में हुई)

– क्यों राजपुरा में पुलिस मूकदर्शक बनी रही?

– एसएसपी संदीप गर्ग और डीएसपी टिवाना को मीटिंग की जानकारी होने के बाद भी सुरक्षा नहीं मिल पाना मंशा पर सवाल खड़े करता है…

– ये न्याय मांगने का तरीका नहीं है, पंजाब सरकार मौन क्यों है?

प्रशासनिक जिम्मेवारी एवं कानून व्यवस्था अच्छी देना सरकार का काम, कानून व्यवस्था दुरुस्त करना सरकार की पहली प्राथमिकता होती है. पर, अब लगता है कि कैप्टन सरकार तथाकथित किसानों की गलत नीतियों का वोट के लिए समर्थन कर रही है. पंजाब में लॉ एंड ऑर्डर नाम की कोई चीज नहीं है.

प्रदेश में जब कांग्रेस सरकार नहीं थी तो क्या कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को इसी तरह दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जाता था और पुलिस कार्रवाई नहीं करती थी? मुख्यमंत्री पंजाब कैप्टन अमरिंदर सिंह को अपने दायित्वों को निभाना चाहिए, नहीं तो यह उनके लिए बहुत शर्म की बात होगी.

बंगाल में चुनावों के दौरान जो हुआ, यहां भी पंजाब विधानसभा चुनावों (2022) के कारण ही हो रहा है. पंजाब को जनता को डर है कि कही बंगाल जैसा माहौल यहां भी ना बन जाए. किसान आंदोलन की आड़ में दिन प्रतिदिन गुंडागर्दी बढ़ती ही जा रही है. जिस के लिए सीधे तौर पर कैप्टन अमरिंदर सिंह और पंजाब पुलिस जिम्मेवार है. इन गुंडों के साथ सख्ती से निपटना चाहिए. पंजाब के गवर्नर को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए, और कानूनी कार्रवाई करनी चाहिए.

पंजाब में विरोधी ताकतों को पलने नहीं देना है. पंजाब की जनता सिर्फ पंजाब का, पंजाबियत का ध्यान रखने वालों का भला चाहती है. पंजाब के लोगों को पंजाब का माहौल ठीक रखने के लिए एकजुट होना पड़ेगा.

“देखना खामोशी नहीं, अब तूफान आएगा.

कल फिर हवाओं का रुख कुछ बदला-बदला सा नजर आएगा.”.

सौरभ कपूर

(लेखक, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संभाग संगठन मंत्री हैं)


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